जब 'मैं' हावी हो जाए तो सोच हो जाती है सीमित, 3 मिनट के इस वीडियो में समझिए अहंकार आपके विचारों को कैसे करता है नियंत्रित
हम सभी के भीतर कहीं न कहीं अहंकार (Ego) मौजूद होता है। यह अहंकार कभी हमें आत्मविश्वास देता है तो कभी हमारी सोच को इतना सीमित कर देता है कि हम सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते। आमतौर पर लोग इसे एक स्वाभाविक गुण मानते हैं, लेकिन जब यह नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो यह हमारे विचारों, निर्णयों और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
अहंकार और विचारों का संबंध
अहंकार का सीधा असर हमारी सोचने-समझने की क्षमता पर होता है। जब कोई व्यक्ति अपने विचारों को ही अंतिम सत्य मान लेता है और दूसरों की बातों को तवज्जो नहीं देता, तो यह अहंकार का संकेत होता है। ऐसा इंसान आलोचना को स्वीकार नहीं कर पाता और अपनी गलती भी नहीं देखता। उसका आत्ममूल्यांकन कमजोर हो जाता है और वह केवल अपने नज़रिए से दुनिया को देखने लगता है।अहंकारी व्यक्ति अक्सर "मैं सही हूं और बाकी सब गलत" जैसी सोच से ग्रसित होता है। इस सोच का असर उसकी निजी और पेशेवर ज़िंदगी दोनों पर पड़ता है। वह अपने आसपास के लोगों की राय को महत्व नहीं देता, जिससे उसके रिश्तों में दूरियाँ आने लगती हैं।
निर्णयों में रुकावट
जब अहंकार हमारे विचारों पर हावी होता है, तो हम भावनात्मक रूप से निर्णय लेने लगते हैं, न कि तार्किक रूप से। कई बार यह देखा गया है कि लोग सिर्फ इसलिए किसी सलाह को नज़रअंदाज़ कर देते हैं क्योंकि वह सलाह किसी ऐसे व्यक्ति से आई होती है जिसे वे कमतर समझते हैं। यह एक मानसिक जड़ता है, जिसमें व्यक्ति का अहंकार उसे सही निर्णय लेने से रोकता है।
सीखने की क्षमता में बाधा
अहंकार से ग्रसित व्यक्ति को लगता है कि उसे सब कुछ पता है। ऐसे में वह नया कुछ सीखना नहीं चाहता, क्योंकि उसे लगता है कि वह पहले से ही पूर्ण है। यह सोच उसे व्यक्तिगत और प्रोफेशनल विकास में पीछे कर देती है। आत्ममंथन और आत्म-सुधार की प्रक्रिया वहीं रुक जाती है, जहां अहंकार हावी होता है।
रिश्तों पर प्रभाव
अहंकार सिर्फ व्यक्ति की सोच को ही नहीं, बल्कि उसके रिश्तों को भी प्रभावित करता है। एक अहंकारी इंसान अपने परिवार, दोस्तों या सहकर्मियों के साथ संवाद में कठोरता ला देता है। वह दूसरों को नीचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करता है। धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति से लोग दूरी बनाने लगते हैं।
अहंकार से कैसे बचें?
आत्मचिंतन करें: हर दिन खुद से सवाल करें—क्या मैं सही सोच रहा हूं? क्या मैंने दूसरों की राय सुनी?
ध्यान और मेडिटेशन: मन को शांत करने से अहंकार कम होता है और विचारों में स्पष्टता आती है।
आलोचना को स्वीकार करें: सकारात्मक आलोचना को अपने विकास का साधन बनाएं।
विनम्रता अपनाएं: विनम्रता न केवल रिश्तों को मजबूत बनाती है, बल्कि सोच को भी संतुलित करती है।

