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आखिर प्रेम कब बन जाता है घुटनभरा बंधन? 2 मिनट के वीडियो में जाने उन संकेतों को जो रिश्ते को बना देते हैं कैदखाना

आखिर प्रेम कब बन जाता है घुटनभरा बंधन? 2 मिनट के वीडियो में जाने उन संकेतों को जो रिश्ते को बना देते हैं कैदखाना

प्रेम... एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही मन में कोमलता, अपनापन, सुरक्षा और जुड़ाव की भावना जागती है। यह वह अनुभव है जिसे हर कोई पाना चाहता है, महसूस करना चाहता है। लेकिन क्या होता है जब यही प्रेम धीरे-धीरे एक अनदेखे कारागृह का रूप ले लेता है? जब वह बंधन जो कभी आज़ादी देता था, अब सांसों पर पहरा बन जाए? सवाल यही है: प्रेम कब कारागृह बन जाता है?


प्रेम की शुरुआत: उत्साह और आत्म-भूल
प्रेम का आरंभ अक्सर बहुत सुंदर होता है। दो लोग एक-दूसरे की ओर खिंचते हैं, बातों में घुलते हैं, सपनों को साझा करते हैं, और धीरे-धीरे एक-दूसरे के बिना खुद को अधूरा महसूस करने लगते हैं। इस दौर में कोई सीमाएं नहीं होतीं, न कोई शर्तें। सब कुछ स्वाभाविक लगता है। लेकिन इसी स्वाभाविक लगने वाले प्रेम में कब “त्याग” की आड़ में “स्व” की पहचान खो जाती है, पता नहीं चलता।

जब प्रेम बनता है स्वामित्व की भावना का शिकार
समस्या वहीं से शुरू होती है जब प्रेमी एक-दूसरे को ‘स्वतंत्र साथी’ न मानकर ‘स्वामित्व की वस्तु’ समझने लगते हैं। सवाल अब "क्या तुम खुश हो?" से बदलकर "किसके साथ थे?", "फोन क्यों नहीं उठाया?", "कपड़े ऐसे क्यों पहने?" जैसे नियंत्रणकारी संवादों में बदल जाते हैं।धीरे-धीरे यह प्रेम एक नियंत्रित वातावरण बन जाता है, जहाँ अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी डर का विषय बन जाता है। और तब यह रिश्ता, जो कभी आत्मा की स्वतंत्रता था, एक मानसिक जेल का रूप ले लेता है।

Emotional Dependency: प्रेम या निर्भरता?
कई बार हम जिसे प्रेम समझते हैं, वह केवल भावनात्मक निर्भरता होती है। जब कोई व्यक्ति यह मान ले कि उसके जीवन की खुशियाँ, आत्म-सम्मान और शांति सिर्फ उसके साथी से जुड़ी हैं – तो वह खुद को उनके बिना अधूरा समझने लगता है। यह असंतुलन प्रेम को एकतरफा बना देता है।ऐसे में व्यक्ति खुद की कीमत पर रिश्ते को बचाने की कोशिश करता है – खुद को बदलकर, सहन कर के, और धीरे-धीरे अपनी अस्मिता खो देता है।

रिश्ते में भय, अपराधबोध और गिल्ट का प्रवेश
जैसे-जैसे प्रेम सीमाओं से गुजरता है, रिश्ते में ‘स्पेस’ की बजाय ‘संदेह’, ‘विश्वास’ की बजाय ‘शक’, और ‘सहयोग’ की जगह ‘निर्देश’ ले लेते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने विचार, दोस्त, कपड़े, करियर या यहां तक कि अपनी मुस्कान पर भी साथी की मंजूरी के बिना फैसला नहीं ले सकता – तब यह प्रेम नहीं, एक मानसिक कारागृह बन चुका होता है।सबसे खतरनाक वह स्थिति होती है जब व्यक्ति को यह एहसास भी नहीं होता कि वह किसी भावनात्मक शोषण का शिकार है। वह अपने भीतर के अपराधबोध को ही प्रेम का नाम देकर जीता रहता है।

क्या यह प्रेम है या 'Toxic Relationship'?
जब कोई रिश्ता बार-बार आपकी ऊर्जा खत्म कर दे, आत्मविश्वास गिरा दे, और खुद को छोटा या बेकार महसूस करवा दे – तो वह प्रेम नहीं, एक विषैला संबंध होता है। और ऐसे संबंधों से निकलना जितना जरूरी होता है, उतना ही कठिन भी।क्योंकि समाज, संस्कृति, और कभी-कभी परिवार भी यह कहता है – “थोड़ा सहन करो, प्यार में ऐसा होता है।” लेकिन क्या यह सच है? क्या आत्म-सम्मान की कीमत पर किसी रिश्ते को निभाना प्रेम है?

प्रेम का असली स्वरूप: स्वतंत्रता और सम्मान
सच्चा प्रेम वह है जो उड़ान देता है, जो समर्थन करता है, जो यह स्वीकार करता है कि सामने वाला एक स्वतंत्र व्यक्ति है – उसकी अपनी इच्छाएं, सीमाएं और सपने हैं।जहां संवाद हो, नियंत्रण नहीं।जहां आलोचना नहीं, बल्कि समझदारी हो।जहां साथी को बदलने की कोशिश नहीं, बल्कि उसे उसके जैसे ही स्वीकार करने की भावना हो – वहीं प्रेम सांस लेता है।

समापन: खुद से प्रेम करना भी ज़रूरी है
जब प्रेम किसी को तोड़ने लगे, तब रुक जाना चाहिए। आत्म-मूल्य और मानसिक स्वास्थ्य, किसी भी रिश्ते से ज्यादा ज़रूरी होते हैं। एक अच्छा रिश्ता आपको मजबूत बनाता है, भयभीत नहीं।इसलिए अगर आप किसी ऐसे रिश्ते में हैं जो आपको घुटन देता है – तो सवाल पूछिए, संवाद कीजिए, और ज़रूरत पड़े तो बाहर निकलने का साहस भी जुटाइए।क्योंकि प्रेम अगर जेल जैसा महसूस हो – तो वह प्रेम नहीं, कैद है।

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