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प्रेम और मोह में क्या है असली अंतर? 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में ओशो से जानिए कैसे पहचानें सच्चे प्रेम और मोह में फर्क

प्रेम और मोह में क्या है असली अंतर? 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में ओशो से जानिए कैसे पहचानें सच्चे प्रेम और मोह में फर्क

प्रेम और मोह — ये दो शब्द भारतीय दर्शन और जीवनशैली में सदियों से चर्चा के केंद्र में रहे हैं। अक्सर लोग इन्हें एक-दूसरे का पर्याय मान लेते हैं, लेकिन ओशो के अनुसार, ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। जहां प्रेम मुक्ति देता है, वहीं मोह बंधन बन जाता है। प्रेम स्वतंत्रता देता है, मोह गुलामी। प्रेम निर्मल होता है, मोह अपेक्षाओं से भरा हुआ।आध्यात्मिक गुरु ओशो ने प्रेम को लेकर जो विचार साझा किए हैं, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उनका मानना था कि जब तक प्रेम को 'मालिकियत', 'स्वामित्व' या 'किसी को पाना' समझा जाता है, तब तक वह प्रेम नहीं बल्कि मोह होता है।

मोह: एक भावनात्मक गुलामी
ओशो के अनुसार, मोह वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति सामने वाले पर अधिकार जमाना चाहता है। वह चाहता है कि सामने वाला सिर्फ उसी का हो, उसकी बात माने, उसकी इच्छा के अनुसार चले। इस प्रकार की भावना रिश्तों को तोड़ती है, जोड़ती नहीं। मोह में व्यक्ति दूसरे के जीवन पर नियंत्रण चाहता है, जबकि प्रेम में वह दूसरे की स्वतंत्रता की रक्षा करता है।मोह में भय होता है – खो देने का, अस्वीकार हो जाने का, अकेले रह जाने का। इसी कारण मोह में असुरक्षा की भावना होती है, जिससे ईर्ष्या, संदेह और नियंत्रण की भावना जन्म लेती है। ओशो कहते हैं, “जहाँ डर है, वहाँ प्रेम नहीं हो सकता।” मोह दरअसल डर का ही एक रूप है, जो प्रेम की आड़ में सामने आता है।

प्रेम: बिना अपेक्षा के स्वीकार
ओशो प्रेम को पूर्ण स्वतंत्रता और सहजता से जोड़ते हैं। उनके अनुसार, “प्रेम केवल तब संभव है जब तुम किसी से कुछ चाहते नहीं, जब तुम केवल देना जानते हो, लेना नहीं।” इसका अर्थ यह नहीं कि प्रेम में कुछ वापस नहीं मिलता, बल्कि प्रेम में कुछ माँगना नहीं पड़ता। जब प्रेम सच्चा होता है, तो वह अपने आप बहता है, उसकी अभिव्यक्ति में सहजता होती है।प्रेम में व्यक्ति सामने वाले को जैसा है, वैसे ही स्वीकार करता है। वह उसे बदलने की कोशिश नहीं करता। ओशो कहते हैं, “प्रेम फूल की तरह होता है, तुम उसकी खुशबू का आनंद लो, लेकिन उसे जड़ से उखाड़ने की कोशिश मत करो।”

मूल अंतर: स्वार्थ बनाम समर्पण
मोह स्वार्थ से जन्म लेता है। वहाँ 'मैं' की भावना प्रबल होती है – मुझे चाहिए, मुझे पसंद है, यह मेरा है। वहीं प्रेम में 'तू' की भावना होती है – तू जैसा है, वैसा ही अच्छा है। प्रेम में समर्पण होता है, वहाँ अहंकार नहीं होता।ओशो मानते हैं कि अधिकांश लोग जिस चीज को 'प्रेम' कहते हैं, वह वास्तव में 'मोह' होता है। इसलिए रिश्तों में दुख, दरार और संघर्ष पैदा होते हैं। यदि व्यक्ति प्रेम की सच्ची प्रकृति समझे, तो वह न तो संबंधों को बोझ समझेगा, न ही किसी पर निर्भर रहेगा।

ओशो की दृष्टि में स्वतंत्र प्रेम
ओशो का प्रेम 'स्वतंत्रता' का दूसरा नाम है। वह कहते हैं कि प्रेम में दो व्यक्ति एक साथ आ सकते हैं, लेकिन अपनी स्वतंत्रता के साथ। एक-दूसरे को पंख देना प्रेम है, पिंजरे में कैद करना मोह है।उनके अनुसार, “अगर तुम्हारा प्रेम तुम्हें बंधन दे रहा है, तो वह प्रेम नहीं है। प्रेम में बंधन नहीं होता – प्रेम पंख देता है, डोर नहीं।”ओशो के ये विचार आधुनिक समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जब रिश्तों में अपेक्षाएं, अधिकार और स्वामित्व की भावना अक्सर प्रमुख हो जाती है। आज का इंसान प्रेम तो चाहता है, लेकिन उसे समझ नहीं पाता। वह मोह को प्रेम समझ बैठता है और फिर टूट जाता है।

आधुनिक संबंधों में ओशो के विचारों की प्रासंगिकता
आज जब रिश्ते सोशल मीडिया, तात्कालिक भावनाओं और सतही संवादों तक सीमित होते जा रहे हैं, तब ओशो का यह ज्ञान और भी उपयोगी बन जाता है। वे हमें सिखाते हैं कि प्रेम एक आंतरिक यात्रा है, बाहर से किसी की तलाश में भटकने से पहले खुद के भीतर उतरना होगा।उनके अनुसार, यदि आप खुद से प्रेम नहीं कर सकते, तो किसी और से सच्चा प्रेम भी संभव नहीं। प्रेम आत्मा का गुण है, स्वभाव है। वह कोशिश से नहीं आता, वह तो होता है – जब अहंकार मिटता है।

इस प्रश्न का उत्तर ही हमारे जीवन की दिशा तय करता है। ओशो हमें बार-बार चेताते हैं कि हम अपने संबंधों को देखना शुरू करें – वहाँ स्वतंत्रता है या बंधन? वहाँ समर्पण है या अपेक्षा? वहाँ अपनापन है या अधिकार?यदि आप प्रेम में हैं, तो आप देने के लिए तैयार होंगे – बिना किसी शर्त के। लेकिन यदि आप सिर्फ पाने के लिए साथ हैं, तो यह मोह है। और मोह अंततः पीड़ा ही देता है।इसलिए ओशो की सीख यही है – प्रेम को समझो, उसे जीओ, लेकिन उसे अपने अहंकार से मत बांधो। तभी जीवन में प्रेम सच्चे रूप में खिल पाएगा – एक सुंदर, निर्मल फूल की तरह।

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