माता पार्वती के अपहरण से जुड़ा है इस व्रत का संबंध, यहां जानिए क्या है धार्मिक ग्रंथों की मान्यता?
हिंदू धर्म में व्रतों और पर्वों का विशेष महत्व है। इन व्रतों के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा या आध्यात्मिक उद्देश्य छिपा होता है, जो व्यक्ति को धर्म, संयम और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। ऐसा ही एक व्रत है जिसका संबंध माता पार्वती के अपहरण की कथा से जुड़ा है। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि स्त्री की शक्ति और सम्मान की रक्षा के लिए देवताओं ने किस प्रकार संघर्ष किया था।
इस व्रत को लेकर अनेक धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में उल्लेख मिलता है, जिसमें माता पार्वती के अपहरण से जुड़ी यह कथा भक्तों को धर्म, भक्ति और साहस की गहराई से जुड़ने का संदेश देती है। आइए विस्तार से जानते हैं इस व्रत की पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व और इसकी आज के युग में प्रासंगिकता।
माता पार्वती का अपहरण – पौराणिक कथा
इस कथा की शुरुआत होती है सुर और असुरों के बीच युद्ध से। एक असुर था जिसका नाम था शंभासुर। शंभासुर बहुत शक्तिशाली था और उसने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकता। वरदान के प्रभाव से वह अत्यंत अहंकारी हो गया और स्वर्गलोक पर अधिकार जमाने लगा। उसने देवी-देवताओं को पराजित करना शुरू कर दिया।
एक दिन उसने माता पार्वती का हरण कर लिया और उन्हें अपने साथ पाताल लोक ले गया। उसके इस अपकर्म से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। शिवजी को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने शंभासुर का संहार करने का निर्णय लिया।
देवताओं ने किया व्रत का आयोजन
शंभासुर अत्यंत शक्तिशाली था, इसलिए उसे पराजित करना आसान नहीं था। देवताओं ने एक विशेष यज्ञ और व्रत का आयोजन किया जिससे शिव शक्ति को जाग्रत किया जा सके। इस व्रत को "शिवा रक्षा व्रत" कहा गया, जिसका उद्देश्य माता पार्वती की रक्षा और शंभासुर के विनाश की कामना था।
इस व्रत को करते हुए देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे अपने रौद्र रूप में प्रकट हों और अधर्म का नाश करें। उनकी तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर शिवजी ने वीरभद्र और काली को उत्पन्न किया, जिन्होंने पाताल लोक जाकर शंभासुर का वध किया और माता पार्वती को मुक्त कराया।
व्रत का धार्मिक महत्व
इस व्रत को करने से स्त्री की रक्षा, पारिवारिक सुख-शांति, और संकट से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से यह व्रत महिलाएं अपने पति और परिवार की रक्षा हेतु करती हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है, उसके जीवन में आने वाले संकट टल जाते हैं और देवी शक्ति की कृपा बनी रहती है।
व्रत करने की विधि
इस व्रत को विशेष रूप से श्रावण मास, चैत्र नवरात्रि या सावन के सोमवार को किया जाता है:
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प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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घर या मंदिर में शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।
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शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, और धतूरा अर्पित करें।
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माता पार्वती को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं।
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"ॐ नमः शिवाय" और "ॐ पार्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करें।
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माता पार्वती से प्रार्थना करें कि वे परिवार की रक्षा करें।
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कथा श्रवण करें और व्रत की पूर्ति पर दान-दक्षिणा करें।
यह व्रत क्यों है आज भी प्रासंगिक?
आज के समय में जब नारी सुरक्षा एक संवेदनशील विषय बना हुआ है, यह व्रत और इसकी कथा हमें यह सिखाती है कि स्त्री की गरिमा, रक्षा और स्वतंत्रता के लिए समाज और परिवार को किस प्रकार सजग रहना चाहिए। माता पार्वती का अपहरण कोई सामान्य घटना नहीं थी, वह यह दर्शाता है कि जब नारी पर संकट आता है, तो पूरा ब्रह्मांड उसकी रक्षा के लिए प्रयास करता है। इसी से यह संदेश मिलता है कि नारी केवल पूज्य ही नहीं, बल्कि शक्तिस्वरूपा भी है।
निष्कर्ष
माता पार्वती के अपहरण से जुड़ा यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक संस्कार, दृष्टिकोण, और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि संकट की घड़ी में ईश्वर की भक्ति, धर्म का अनुसरण और सच्चे मन से की गई प्रार्थना असंभव को भी संभव बना सकती है। यह व्रत आज भी महिलाओं और परिवारों के बीच आस्था और विश्वास का प्रतीक बना हुआ है, जो यह बताता है कि भक्ति, साहस और धर्म के पथ पर चलकर किसी भी संकट से मुक्ति पाई जा सकती है।

