देश का ऐसा चमत्कारी मंदिर, जहां ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए लक्ष्मण जी ने की थी 212 साल तपस्या

देवभूमि उत्तराखंड में कई प्राचीन मंदिर हैं। इन्हीं जगहों में से एक है देहरादून, जहां आपको मान्यताओं वाले कई पुराने मंदिर मिल जाएंगे। इन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। देहरादून के मुख्य शहर से 12 किलोमीटर दूर हरिद्वार रोड पर जंगलों के बीच एक प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका संबंध रामायण काल से है। यहां राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी। यह मंदिर ऋषि दत्तात्रेय के चौरासी सिद्धों में से एक है। यहां प्रसाद के रूप में चना और गुड़ चढ़ाया जाता है।
212 साल की तपस्या
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर के पुजारी अजय देवली बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में रावण और मेघनाद का वध करने के बाद लक्ष्मण को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। रावण ब्राह्मण जाति का था और शिव का उपासक भी था। उसने रावण के बेटे मेघनाथ का वध उस समय किया, जब मेघनाथ अपनी कुल देवी की पूजा में बैठा था। उस समय उसके पास कोई हथियार नहीं था। इसके कारण लक्ष्मण को ब्रह्म हत्या दोष के साथ राजयक्ष्मा रोग भी हो गया। इसके निवारण के लिए वे उत्तराखंड आए और ऋषिकेश में 212 वर्षों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर बाबा भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए। ऋषिकेश जाने से पहले लक्ष्मण ने इसी स्थान पर तपस्या की थी, जहां आज लक्ष्मण सिद्ध मंदिर है।
84 सिद्धों में से एक
इस मंदिर की एक और कहानी ऋषि दत्तात्रेय से जुड़ी है, जिन्होंने लोगों के कल्याण के लिए 84 शिष्य बनाए थे। उन्हें अपनी सारी शक्तियां दे दी थीं। कालांतर में ये चौरासी शिष्य 84 सिद्ध कहलाए और उनके समाधि स्थल को सिद्धपीठ या सिद्ध मंदिर माना गया। इन 84 सिद्धों में देहरादून के भी चार सिद्ध हैं, जिनमें लक्ष्मण बाबा भी एक हैं। इस मंदिर का नाम लक्ष्मण सिद्धपीठ इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने यहीं समाधि ली थी।