भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हर सोमवार करें इस स्त्रोत का पाठ, धन- समृद्धि की होगी प्राप्ति
भारतीय संस्कृति में भगवान शिव को आदि देव के रूप में पूजा जाता है। उनकी महिमा का बखान शास्त्रों, पुराणों और वेदों में विस्तृत रूप से किया गया है। इन्हीं स्तुतियों में से एक है शिव पंचाक्षर स्तोत्र, जो भगवान शिव के पांच प्रमुख अक्षरों 'न', 'म', 'शि', 'वा' और 'य' की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक साधना का एक प्रभावशाली माध्यम है, बल्कि इसे पढ़ने से मन, शरीर और आत्मा को शांति मिलती है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का इतिहास और उत्पत्ति
शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई मानी जाती है। शंकराचार्य ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव की भक्ति का एक सरल और प्रभावशाली मार्ग बताया। यह स्तोत्र पंचाक्षर मंत्र 'नमः शिवाय' पर आधारित है, जिसे शिव का बीज मंत्र भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पंचाक्षर मंत्र स्वयं भगवान शिव का स्वरूप है, जिसमें सृष्टि, पालन और संहार की ऊर्जा समाहित है।
क्यों कहते हैं पंचाक्षर?
'नमः शिवाय' में पांच अक्षर होते हैं - 'न', 'म', 'शि', 'वा', 'य'। प्रत्येक अक्षर पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का प्रतीक है। यह पंचाक्षर मंत्र साधक को पांचों तत्वों के संतुलन और ब्रह्मांड की ऊर्जा से जोड़ता है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ
शिव पंचाक्षर स्तोत्र में प्रत्येक श्लोक पंचाक्षर मंत्र के एक अक्षर से शुरू होता है और भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है।
स्तोत्र के मंत्र
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवाय वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नमः शिवाय यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नमः शिवाय पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ । शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते अर्थ वे जिनके पास साँपों का राजा उनकी माला के रूप में है, और जिनकी तीन आँखें हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है और जो महान प्रभु है, वे जो शाश्वत है, जो पूर्ण पवित्र हैं और चारों दिशाओं को जो अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "न" द्वारा दर्शाया गया है वे जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है, वे जो नंदी के और भूतों-पिशाचों के स्वामी हैं, महान भगवान, वे जो मंदार और कई अन्य फूलों के साथ पूजे जाते हैं, उस शिव को प्रणाम, जिन्हें शब्दांश "म" द्वारा दर्शाया गया है वे जो शुभ है और जो नए उगते सूरज की तरह है, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है, वे जो दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं, वे जिनका कंठ नीला है, और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "शि" द्वारा दर्शाया गया है वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों - वशिष्ट, अगस्त्य और गौतम, और देवताओं द्वारा भी पूजित है, और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं, वे जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें हों, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "वा" द्वारा दर्शाया गया है वे जो यज्ञ (बलिदान) का अवतार है और जिनकी जटाएँ हैं, जिनके हाथ में त्रिशूल है और जो शाश्वत हैं, वे जो दिव्य हैं, जो चमकीला हैं, और चारों दिशाएँ जिनके वस्त्र हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश "य" द्वारा दर्शाया गया है जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं, वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे।
स्तोत्र पढ़ने के लाभ
- आध्यात्मिक शांति: पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक तनाव और अशांति को दूर करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इस स्तोत्र के उच्चारण से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- कर्म शुद्धि: पंचाक्षर मंत्र व्यक्ति के पापों का नाश कर उसे मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करता है।
- स्वास्थ्य लाभ: इसके नियमित जाप से मन और शरीर दोनों में संतुलन बना रहता है।
निष्कर्ष
शिव पंचाक्षर स्तोत्र केवल एक भजन नहीं, बल्कि यह भगवान शिव के प्रति गहन श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह स्तोत्र शिव भक्ति का सरल मार्ग है, जो व्यक्ति को अध्यात्म और मोक्ष की दिशा में प्रेरित करता है। यदि आप भी शिव भक्ति में लीन होना चाहते हैं, तो रोजाना इस स्तोत्र का पाठ करें और भगवान शिव की कृपा पाएं।