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बद्रीनाथ में पैदा हुई इस सुंदर स्त्री के आगे रंभा, मेनका भी हुई फेल, इंद्र भी टकटकी लगाए देखते रह गए

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उत्तराखंड के बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थल को हमेशा से देवभूमि कहा गया है। यहां की पवित्रता, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा विश्वभर में प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ की इसी पुण्य भूमि पर एक ऐसी दिव्य स्त्री का जन्म हुआ था, जिसकी सुंदरता के सामने स्वर्ग की अप्सराएं – रंभा, मेनका और उर्वशी भी फीकी पड़ गईं? यहां तक कि इंद्रदेव भी उसे देखकर सम्मोहित हो गए और टकटकी लगाए देखते रह गए। इस स्त्री का नाम था उषा – एक ऐसी पात्र, जिसकी कथा पुराणों और लोककथाओं में बेहद रहस्यमयी और प्रभावशाली मानी जाती है।

कौन थीं उषा?

उषा का उल्लेख विशेष रूप से शिव पुराण और भागवत पुराण में मिलता है। वह असुर वंश के बलशाली राजा बाणासुर की पुत्री थीं। बाणासुर का शासन हिमालय क्षेत्र में फैला हुआ था और बद्रीनाथ की घाटियों में उसका एक महल था, जहां उषा का जन्म हुआ। उषा बचपन से ही असाधारण सुंदरता की धनी थीं। उसकी कांति ऐसी थी कि चंद्रमा भी शर्मा जाए। कहते हैं कि स्वर्ग की सुंदरतम अप्सराएं भी उसके सामने साधारण लगती थीं। जब उषा किशोर अवस्था में पहुंची, तो उसकी सुंदरता के चर्चे केवल पृथ्वी पर नहीं, बल्कि देवलोक तक पहुंच गए।

इंद्र भी रह गए दंग

एक बार स्वर्ग के राजा इंद्रदेव ने जब उषा की छवि देखी, तो वे मंत्रमुग्ध रह गए। इंद्र, जिन्हें रंभा, मेनका और उर्वशी जैसी अप्सराएं घेरकर रखती थीं, वे भी उषा को देख कर कुछ क्षणों तक नज़रें हटा ही नहीं पाए। यह घटना दर्शाती है कि उषा की सुंदरता दिव्य स्तर की थी, जिसे देवता भी अनदेखा नहीं कर सके।

उषा का प्रेम और अनोखा सपना

उषा की कथा में प्रेम की भी अद्भुत भूमिका है। एक रात उसने एक सपने में एक युवक को देखा और उसी से प्रेम कर बैठी। यह युवक कोई और नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध थे। सपना इतना सजीव था कि उषा ने उसकी एक-एक झलक चित्रकार चित्रलेखा से बनवाई। चित्रलेखा ने योगबल से अनिरुद्ध को द्वारका से बुलाया और उषा से मिलवाया। फिर शुरू हुई बाणासुर और श्रीकृष्ण के बीच एक भयंकर युद्ध, जिसमें अंततः श्रीकृष्ण ने बाणासुर को पराजित किया और अनिरुद्ध-उषा का विवाह संपन्न हुआ।

निष्कर्ष

बद्रीनाथ की भूमि पर जन्मी उषा केवल सुंदरता की प्रतिमूर्ति नहीं थीं, बल्कि प्रेम, धैर्य और संकल्प की मिसाल थीं। उन्होंने स्वर्ग की अप्सराओं से भी अधिक सम्मान और प्रेम पाया। उनकी कथा आज भी बद्रीनाथ और आसपास के क्षेत्रों में लोकगीतों और कथाओं के माध्यम से सुनाई जाती है।

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