महलों, संगीत और सौंदर्य के बीच पनपी थी महेंद्र-मूमल की मोहब्बत, वायरल वीडियो में जानिए उस ज़माने में क्या थी प्रेम की परिभाषा

प्रेम की कहानियां जब किसी राज्य की मिट्टी में रच-बस जाती हैं, तो वे केवल किस्से नहीं रह जातीं – वे संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। राजस्थान की मरुभूमि ऐसी ही अनेक अमर प्रेम कहानियों की साक्षी रही है, जिनमें से एक है राजकुमार महेंद्र और राजकुमारी मूमल की रूह कंपा देने वाली प्रेमगाथा। यह कहानी न केवल प्रेम की गहराई को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि पुराने ज़माने में प्रेम का अर्थ केवल मिलन नहीं, बल्कि त्याग, परीक्षा और आत्मा की शुद्धता से भी जुड़ा होता था।
जब संगीत बना प्रेम का माध्यम
मूमल, जैसलमेर के लोद्रवा की रहने वाली एक बेहद सुंदर, बुद्धिमान और कला-संस्कृति में निपुण राजकुमारी थी। उनके महल में रोज़ शाम संगीत, नृत्य और शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थीं। दूर-दूर से राजकुमार और वीर योद्धा उनके सौंदर्य और बुद्धिमत्ता से आकर्षित होकर आते थे, परंतु मूमल ने स्वयं को प्रेम के लिए सुरक्षित रखा था — एक ऐसे साथी की तलाश में जो केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आत्मिक स्तर पर भी उसे समझ सके।उधर, अमरकोट (अब सिंध, पाकिस्तान) के राजकुमार महेंद्र भी संगीत प्रेमी, सौम्य और अत्यंत बुद्धिमान थे। जब उन्हें मूमल के सौंदर्य और उसकी ख्याति का समाचार मिला, तो वे भी लोद्रवा की ओर निकल पड़े। यह कोई सामान्य मिलन नहीं था – यह दो रूहों की उस तलाश का अंत था जो एक-दूसरे को पहचान रही थीं, संगीत के सुरों से, बातचीत की लय से, और नज़रों की भाषा से।
प्रेम की पहली परीक्षा
महेंद्र जब मूमल से मिले, तो उनके बीच का संवाद मानो सदियों पुराना रिश्ता याद दिला रहा हो। लेकिन मूमल ने उन्हें परखने के लिए एक रहस्यमयी परीक्षा रखी — ऐसा रास्ता जो केवल सच्चे प्रेमी की ईमानदारी और बहादुरी से पार किया जा सकता था। महेंद्र ने वह परीक्षा पास की, और दोनों के बीच प्रेम का बीज पूरी तरह अंकुरित हो गया।परंतु प्रेम की राह कभी आसान नहीं होती। राजसी परिवारों में प्यार अक्सर सामाजिक मर्यादाओं से टकरा जाता है, और यही हुआ महेंद्र-मूमल के साथ। कुछ विरोधी दरबारियों और नियति ने ऐसा जाल बुना कि दोनों के बीच गलतफहमियां पैदा हो गईं। मूमल को लगा कि महेंद्र ने उसे धोखा दिया, जबकि सच्चाई कुछ और थी।
मूमल की आत्मा ने दी अग्निपरीक्षा
इस ग़लतफ़हमी ने मूमल को अंदर से तोड़ दिया। उसने स्वयं को आग के हवाले कर दिया, यह साबित करने के लिए कि उसका प्रेम शुद्ध था, निष्कलंक था। कहते हैं कि जैसे ही महेंद्र को यह समाचार मिला, वह दौड़ते हुए आया और मूमल की चिता में कूद गया। दोनों प्रेमी अग्नि में एक हो गए — तन भले जल गया, लेकिन प्रेम अमर हो गया।
उस ज़माने में प्रेम क्या था?
आज के समय में जहां प्रेम त्वरित संदेशों, इंस्टेंट कॉल्स और लाइक्स-फॉलो की सीमाओं में सिमट गया है, वहीं महेंद्र-मूमल की प्रेमगाथा यह सिखाती है कि सच्चा प्यार त्याग मांगता है, धैर्य चाहता है, और परीक्षा में खरा उतरना ही उसका सार है। उस समय प्रेम केवल ‘मिलन’ नहीं था, वह एक आत्मिक यात्रा थी जिसमें यदि एक ताज था तो दूसरी तरफ़ बलिदान की माला भी।
आज भी राजस्थान के लोकगीतों और कथाओं में मूमल का नाम बड़े आदर और दर्द से लिया जाता है। जैसलमेर की रेत में जब हवाएं चलती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे महेंद्र और मूमल की रूहें अभी भी एक-दूसरे की तलाश में भटक रही हैं — एक ऐसी मोहब्बत की मिसाल बनकर जो युगों तक याद की जाती रहेगी।