प्रेम के बिना जीवन अधूरा है! इस वायरल वीडियो में जाने Osho ने प्रेम को क्यों कहा अस्तित्व का सबसे बड़ा आधार ?
आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में इंसान भाग तो रहा है, लेकिन भीतर से खाली होता जा रहा है। हम रोज़ नए लोगों से मिलते हैं, नए रिश्ते बनते हैं, लेकिन उनमें सच्चाई और गहराई का अक्सर अभाव होता है। ऐसे समय में ओशो जैसे आत्मदर्शी संत की बातें हमें रुककर सोचने के लिए मजबूर करती हैं — "प्रेम ही जीवन का आधार है।" यह केवल एक भावनात्मक या रोमांटिक विचार नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक और अस्तित्व से जुड़ा सत्य है।ओशो के अनुसार प्रेम कोई भावना नहीं, बल्कि हमारी चेतना की एक स्थिति है। यह ऐसा अनुभव है जो तब होता है जब अहं समाप्त हो जाता है। जब कोई "मैं" और "तू" नहीं रहता, तब केवल प्रेम रह जाता है। ओशो कहते हैं, "प्रेम स्वाभाविक है। नफरत सीखी जाती है। अगर तुम खुद को खोल दो, तो प्रेम स्वतः बहने लगता है।" उनका मानना था कि प्रेम किसी पर निर्भर नहीं करता, वह स्वयं में पूर्ण होता है।
प्रेम में मिलती है पूर्णता
ओशो का प्रेम कोई पारंपरिक बंधन नहीं था। वह कहते थे, “जहां बंधन है, वहां प्रेम नहीं है। जहां स्वतंत्रता है, वहीं सच्चा प्रेम खिलता है।” उनका यह कथन उन सभी सामाजिक और मानसिक बंधनों को चुनौती देता है जो हमने प्रेम के नाम पर स्वीकार कर लिए हैं। ओशो के अनुसार प्रेम में न स्वामित्व होता है, न अधिकार। यह दो स्वतंत्र आत्माओं का उत्सव होता है, जिसमें कोई मालिक नहीं होता।वह प्रेम को एक आध्यात्मिक साधना की तरह देखते थे। ओशो कहते हैं कि सच्चा प्रेम वह है जो तुम्हें भीतर तक बदल देता है, तुम्हारे अहं को तोड़ देता है और तुम्हें शून्य के करीब ले जाता है। और जब तुम शून्य होते हो, तभी तुम पूर्ण होते हो।
प्रेम के बिना जीवन अधूरा
ओशो ने अनेक प्रवचनों और पुस्तकों में प्रेम को जीवन का सार बताया। उनके अनुसार, जो व्यक्ति प्रेम नहीं करता, वह जीते हुए भी मरा हुआ है। प्रेम के बिना जीवन एक बोझ बन जाता है — वह केवल अस्तित्व होता है, जीवन नहीं। ओशो कहते हैं, "प्रेम वह पुल है जो तुम्हें भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।"उनके अनुसार समाज ने हमें प्रेम के खिलाफ बहुत कुछ सिखाया है — ईर्ष्या, स्वामित्व, नियंत्रण — लेकिन ये सब प्रेम को मारने वाले तत्व हैं। एक बार प्रेम में उतर जाने पर व्यक्ति अपने भीतर से खिलता है, उसके भीतर करुणा, सहानुभूति और आनंद का झरना बहने लगता है।
प्रेम से आता है ध्यान
ओशो प्रेम और ध्यान को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं। वह कहते हैं कि प्रेम तुम्हें ध्यान की ओर ले जाता है, और ध्यान तुम्हें उस शुद्ध प्रेम की ओर जो किसी वस्तु या व्यक्ति पर आधारित नहीं होता। एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति ही ध्यान कर सकता है, और एक ध्यानयुक्त व्यक्ति ही सच्चे प्रेम को जान सकता है।वे कहते हैं कि जब तुम किसी को प्रेम से देखो, तो तुम्हारी दृष्टि बदल जाती है — तुम उस व्यक्ति को नहीं, उसकी आत्मा को देखना शुरू करते हो। यही दृष्टिकोण धीरे-धीरे सबके लिए विकसित हो जाए, तो यह संसार स्वर्ग बन सकता है।
समाज और प्रेम के बीच की दूरी
ओशो ने यह भी कहा कि समाज हमेशा प्रेम से डरता है। क्योंकि प्रेम स्वतंत्रता लाता है, और स्वतंत्र व्यक्ति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि समाज प्रेम के खिलाफ कई तरह के नियम बनाता है, उसे विवाह, जाति, धर्म और संस्कृति की जंजीरों में जकड़ता है। ओशो इन बंधनों को तोड़कर प्रेम को उसकी शुद्ध अवस्था में जीने का संदेश देते हैं।वे कहते हैं, “अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते, तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते — क्योंकि प्रेम ही जीवन की पहली कला है।” उनके अनुसार, समाज को बदलने के लिए प्रेम को केंद्र में लाना आवश्यक है, क्योंकि जहां प्रेम होगा, वहां हिंसा नहीं होगी, द्वेष नहीं होगा, शोषण नहीं होगा।

