वीडियो में जानिए कैसी हो जाती है अतीत की बुरी यादों में उलझे व्यक्ति की हालत ? जानिए इनसे उभरने के उपाय
हममें से हर किसी के जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो समय के साथ फीकी नहीं पड़तीं। कुछ यादें मीठी होती हैं, तो कुछ इतनी कड़वी कि समय बीत जाने के बाद भी मन से नहीं जातीं। लेकिन जब कोई व्यक्ति अतीत की बुरी यादों में इतना उलझ जाए कि उसका वर्तमान और भविष्य दोनों ही प्रभावित होने लगें, तो यह एक गंभीर मानसिक स्थिति बन जाती है। यह न केवल मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है, बल्कि व्यक्ति की सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक जिंदगी को भी गहरा नुकसान पहुंचा सकती है।
क्या होता है जब बीता हुआ कल पीछा नहीं छोड़ता?
ऐसे लोग जो किसी गंभीर मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक आघात से गुजरे होते हैं—जैसे कि बचपन में शोषण, किसी करीबी की मृत्यु, गंभीर दुर्घटना या अपमानजनक घटनाएं—उनके दिमाग में यह यादें बार-बार घूमती रहती हैं। ये यादें इतनी गहरी होती हैं कि व्यक्ति चाहकर भी उन्हें भुला नहीं पाता। इसे मनोवैज्ञानिक भाषा में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) कहा जाता है।
पीड़ित व्यक्ति की हालत कैसी होती है?
नींद की कमी और बुरे सपने: बुरी यादें व्यक्ति को सोने नहीं देतीं। रात को नींद टूट जाना, डरावने सपने देखना या उसी घटना को दोबारा अनुभव करना आम बात हो जाती है।
अकेलापन और अवसाद: ऐसे व्यक्ति भीड़ में भी अकेला महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि कोई उन्हें समझ नहीं सकता। धीरे-धीरे वे समाज से कटने लगते हैं।
गुस्सा और चिड़चिड़ापन: छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना, मूड स्विंग होना और कभी-कभी हिंसक व्यवहार तक दिखना—ये इसके लक्षण होते हैं।
भविष्य का डर और नकारात्मक सोच: ऐसे लोग अक्सर भविष्य को लेकर निराश रहते हैं। उन्हें लगता है कि कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता।
शारीरिक लक्षण: सिरदर्द, थकान, अपच, दिल की धड़कन तेज होना जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं।
समाज और परिवार की भूमिका
इस तरह की स्थिति से जूझ रहे व्यक्ति को सबसे पहले समझने और स्वीकार करने की ज़रूरत होती है। दुर्भाग्यवश, भारतीय समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी जागरूकता की कमी है। ऐसे व्यक्ति को "कमज़ोर", "नकारात्मक" या "पागल" तक कहा जाता है, जिससे उनकी हालत और भी बिगड़ जाती है।परिवार और दोस्तों को चाहिए कि वे पीड़ित व्यक्ति के साथ सहानुभूति रखें, उन्हें सुने, उन पर कोई दबाव न बनाएं और पेशेवर मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें। मानसिक रोग भी किसी अन्य बीमारी की तरह ही इलाज योग्य है।
इलाज और समाधान
मनोचिकित्सा (थैरेपी): काउंसलिंग और थैरेपी से व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। इससे बुरी यादों को नियंत्रित करना और धीरे-धीरे उन्हें स्वीकार कर वर्तमान में जीना सीखना संभव होता है।
दवाइयां: कई बार अवसाद और चिंता के लिए डॉक्टर दवाइयां भी लिखते हैं। हालांकि, यह सिर्फ चिकित्सकीय सलाह के बाद ही लेना चाहिए।
योग और मेडिटेशन: ध्यान और प्राणायाम जैसी तकनीकें मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।
जर्नलिंग और आर्ट थेरेपी: कुछ लोग अपनी भावनाएं लिखकर या चित्र बनाकर बेहतर महसूस करते हैं।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. नलिनी वर्मा कहती हैं, “हर व्यक्ति के भीतर एक अदृश्य संघर्ष चलता है, जो बाहर से नज़र नहीं आता। जो लोग अतीत के दर्द से मुक्त नहीं हो पा रहे, उन्हें यह समझना चाहिए कि मदद लेना कोई शर्म की बात नहीं है। जितना जल्दी इलाज शुरू हो, उतना ही बेहतर परिणाम मिलते हैं।”
बढ़ रही है चिंता
वर्तमान समय में तनाव, प्रतिस्पर्धा और सामाजिक अपेक्षाओं के दबाव ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ा दिया है। कोविड-19 के बाद से ऐसे मामलों में 30% की वृद्धि देखी गई है। खासकर युवाओं में आत्मग्लानि और अतीत की घटनाओं को लेकर मानसिक संघर्ष बढ़ गया है।
क्या कहती है रिसर्च?
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों ने अपने जीवन में गंभीर ट्रॉमा झेला है, उनमें से 60% लोग अपने विचारों में बार-बार उन्हीं घटनाओं को दोहराते हैं और 35% लोग अवसाद की चपेट में आ जाते हैं। वहीं, 25% मामलों में आत्मघाती विचार भी देखने को मिले हैं।

