वीडियो में जानिए पुरुषों की वो अनदेखियाँ जिनके कारण तलाक लेने के लिए मजबूर हो जाती है महिलाएं

शादी को लेकर समाज में एक मजबूत धारणा यह बनी हुई है कि यह एक पवित्र बंधन है, जिसमें पति-पत्नी समान रूप से जिम्मेदार होते हैं। परंतु जब यह रिश्ता टूटता है, तो अक्सर उंगलियां महिलाओं पर ही उठती हैं—कभी उनके स्वभाव पर, कभी उनकी प्राथमिकताओं पर। लेकिन क्या कभी हमने यह जानने की कोशिश की है कि किन वजहों से महिलाएं इस रिश्ते से बाहर निकलने का फैसला करती हैं? कई बार तलाक की जड़ उन अनदेखी आदतों में होती है, जो पुरुष अनजाने में या लापरवाही से करते हैं, और जो धीरे-धीरे महिलाओं को भावनात्मक रूप से तोड़ देती हैं।
1. संवेदनशीलता की कमी और भावनात्मक दूरी
अक्सर देखा जाता है कि विवाह के शुरुआती वर्षों में पति-पत्नी के बीच काफी भावनात्मक जुड़ाव होता है, लेकिन समय के साथ कई पुरुष अपनी पत्नियों के भावनात्मक संकेतों को नजरअंदाज करने लगते हैं। महिलाएं चाहती हैं कि उनका जीवनसाथी न केवल उनकी बातें सुने, बल्कि उन्हें समझे भी। परंतु जब उन्हें बार-बार यह अहसास होता है कि उनके भाव, चिंता या मानसिक थकावट को नजरअंदाज किया जा रहा है, तो वे खुद को अकेला महसूस करने लगती हैं। यह अकेलापन धीरे-धीरे रिश्ते को अंदर ही अंदर खा जाता है।
2. संचार की कमी और संवादहीनता
शादी के रिश्ते में संवाद सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। अगर पति अपनी पत्नी से खुलकर बात नहीं करता, उसकी बातों को अनसुना करता है या समय नहीं देता, तो यह महिला के आत्मसम्मान और भरोसे को ठेस पहुंचाता है। एक रिश्ते में मौन संवाद से अधिक खतरनाक कुछ नहीं होता। जब बातचीत कम होती जाती है, तो गलतफहमियां बढ़ती जाती हैं और अंततः तलाक जैसे निर्णय तक बात पहुंच जाती है।
3. गृहकार्य को लेकर असहयोगिता
आज की महिलाएं न केवल घर संभाल रही हैं, बल्कि करियर में भी पुरुषों के बराबर योगदान दे रही हैं। ऐसे में जब पुरुष घर के कामों में भागीदारी नहीं करते और सारा बोझ पत्नी पर डाल देते हैं, तो यह एक प्रकार की असमानता बन जाती है। महिलाओं को लगता है कि वे केवल 'जिम्मेदारी निभाने वाली मशीन' बनकर रह गई हैं। यह असहयोगिता जब सीमा पार कर जाती है, तो स्त्री इस रिश्ते में दम घुटने जैसा महसूस करने लगती है।
4. सम्मान और सराहना की कमी
हर इंसान चाहता है कि उसकी मेहनत को पहचाना जाए, उसकी भावनाओं का सम्मान किया जाए। महिलाएं भी अपने पति से यह उम्मीद रखती हैं कि वे उनके प्रयासों की सराहना करेंगे—चाहे वो घर की देखभाल हो, बच्चों की परवरिश या उनका प्रोफेशनल जीवन। पर जब बार-बार उनकी कोशिशों को नकारात्मक नजरों से देखा जाता है या उन्हें 'for granted' लिया जाता है, तो उनके आत्मबल को ठेस लगती है। यह धीरे-धीरे दूरी का कारण बन जाता है।
5. अनुचित अपेक्षाएं और तुलना करना
अक्सर पुरुष अपनी पत्नियों से उन मानकों पर खरा उतरने की उम्मीद करते हैं, जो अवास्तविक होते हैं—जैसे कि वे हमेशा सुंदर दिखें, घर को परफेक्ट चलाएं, माता-पिता की सेवा करें और साथ ही प्रोफेशनली भी सक्रिय रहें। साथ ही कई बार पत्नी की तुलना मां, बहन या अन्य महिलाओं से की जाती है, जो उनकी आत्मा को ठेस पहुंचाती है। यह तुलना रिश्ते में कटुता और असंतोष को जन्म देती है।
6. नकारात्मक व्यवहार और गुस्सा
कुछ पुरुषों की आदत होती है कि वे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं, तंज कसते हैं या अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं। कई बार यह व्यवहार 'इमोशनल एब्यूज' की श्रेणी में आता है, जिसे समाज में अधिकतर नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन महिलाएं जब इस व्यवहार से बार-बार आहत होती हैं, तो वे धीरे-धीरे मानसिक रूप से टूट जाती हैं और एक समय बाद इस रिश्ते को समाप्त करना ही बेहतर समझती हैं।
7. विश्वास की कमी और बेवफाई
रिश्ते की नींव विश्वास पर टिकी होती है। अगर पति किसी और महिला से भावनात्मक या शारीरिक संबंध बनाता है या बार-बार झूठ बोलता है, तो यह पत्नी के लिए गहरा आघात होता है। बेवफाई एक ऐसा कारण है जो अधिकांश तलाकों का कारण बनता है। जब महिला को यह अनुभव होता है कि वह सिर्फ एक विकल्प बनकर रह गई है, तो उसका इस रिश्ते से मोहभंग हो जाता है।
8. अपनी प्राथमिकता में पत्नी को जगह न देना
शादी के बाद महिलाएं उम्मीद करती हैं कि उनके पति उन्हें जीवन की प्राथमिकताओं में शामिल करेंगे—चाहे वो समय देना हो, फैसलों में उनकी भागीदारी हो या जीवन की योजनाओं में उनकी सलाह को अहमियत देना हो। जब पुरुष हर निर्णय अकेले लेने लगते हैं या पत्नी को समय देने से कतराते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे इस रिश्ते में महत्वहीन हैं।
तलाक सिर्फ एक कागजी प्रक्रिया नहीं है, यह एक लंबे दर्द और संघर्ष का नतीजा होता है। महिलाओं को कोई खुशी-खुशी तलाक नहीं लेना चाहता, लेकिन जब उनका आत्मसम्मान, भावना और अस्तित्व बार-बार उपेक्षित किया जाता है, तब वे यह कठिन फैसला लेती हैं। पुरुषों को चाहिए कि वे अपने जीवनसाथी की भावनाओं को समझें, उनकी कोशिशों की कद्र करें और एक साझेदार की तरह व्यवहार करें—न कि सिर्फ एक नियंत्रक की तरह। तभी विवाह जैसी संस्था अपने सही मायने में कायम रह सकेगी।