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महाभारत में कर्ण को पूर्वजन्म में मारने के लिए अर्जुन और कृष्ण ने लिए थे कई जन्म लेकिन इस कारण से नहीं हो पाए सफल

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महाभारत की कथा जितनी रोमांचक है, उतनी ही गहराई और रहस्य से भी भरपूर है। इसके पात्र केवल युद्ध के नायक नहीं थे, बल्कि उनके पीछे कई जन्मों की कहानियां, तपस्याएं और श्राप भी छिपे हुए थे। इन्हीं पात्रों में से एक थे कर्ण — जिन्हें सूर्यपुत्र, दानवीर और महायोद्धा के रूप में जाना जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में कर्ण को मारने के लिए अर्जुन और श्रीकृष्ण ने कई जन्म लिए थे, लेकिन एक खास कारण के चलते वे लंबे समय तक इसमें सफल नहीं हो पाए?

कौन थे कर्ण?

कर्ण, कुंती के पुत्र और सूर्य देव के अंश से उत्पन्न थे। उनका जन्म अविवाहित कुंती को मिला वरदान था। वे बाल्यकाल में ही एक सूत परिवार को सौंप दिए गए और सूतपुत्र कहलाए। मगर उनके भीतर क्षत्रिय योद्धा का तेज, धर्म, दान और सत्य की शक्ति समाहित थी। उनकी वीरता, युद्धकौशल और दानवीरता की मिसाल आज भी दी जाती है।

पूर्वजन्म की कथा – जहां शुरू हुई यह दुश्मनी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कर्ण का पूर्वजन्म ‘दानव राजा सहस्त्रकवच’ के रूप में हुआ था। यह असुर देवताओं के लिए एक अजेय शक्ति था, जिसके शरीर पर एक नहीं, पूरे एक हजार कवच थे। उसकी तपस्या से ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया था कि हर कवच को भेदने वाला मृत्यु को प्राप्त करेगा। यही कारण था कि सहस्त्रकवच को मारना लगभग असंभव था।

श्रीकृष्ण और अर्जुन का तप और अवतार

इस राक्षस को मारने के लिए स्वयं नारायण (श्रीकृष्ण) और नारा (अर्जुन) ने कई जन्म लिए। हर जन्म में वे एक कवच को नष्ट करते और स्वयं की बलि देकर फिर से जन्म लेते। जब 999 कवच नष्ट हो चुके, तब सहस्त्रकवच भयभीत होकर सूर्यदेव की शरण में चला गया और उनसे वरदान प्राप्त कर अगले जन्म में कर्ण के रूप में पैदा हुआ।

क्यों नहीं हो पाए सफल?

कर्ण को जब सूर्य का संरक्षण मिला, तो उसे मारना और भी कठिन हो गया। साथ ही, उसके भीतर छिपी हुई दानवीरता और धर्म के प्रति आस्था ने उसे सीधे राक्षसी प्रवृत्ति से दूर कर दिया। यही कारण था कि श्रीकृष्ण और अर्जुन जैसे दिव्य आत्माएं भी उसे पहले सीधे नहीं मार सके।

महाभारत के युद्ध में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कई बार कहा कि कर्ण को हल्के में मत लो, क्योंकि वह युद्ध नीति में महारथी है और अधर्म के पक्ष में होते हुए भी धर्म की मर्यादा नहीं छोड़ता। यही वजह थी कि कर्ण को धोखे से मारना ही एकमात्र विकल्प रह गया।

अंत कैसे हुआ?

कर्ण का अंत कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुआ, जब वह युद्धभूमि में रथ के पहिए को निकालने के लिए नीचे झुका था। उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संकेत दिया और तब अर्जुन ने नियमों को तोड़कर कर्ण का वध किया। यह महाभारत का सबसे विवादित और दुखद प्रसंगों में से एक माना जाता है।

निष्कर्ष

कर्ण केवल एक योद्धा नहीं थे, वे एक संकल्प, एक तपस्या और एक धर्मसंकट थे। अर्जुन और श्रीकृष्ण जैसे महान योद्धाओं को भी कई जन्म लेने पड़े ताकि वे कर्ण को पराजित कर सकें। परंतु कर्ण की वीरता, दानशीलता और धर्म के प्रति समर्पण ने उन्हें आज भी महाभारत का सबसे सम्मानित और भावुक चरित्र बना दिया है।

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