बल, बुद्धि और विजय का चाहिए वरदान तो वीडियो में हर मंगलवार सुने हनुमान जी के इस शक्तिशाली मंत्र का जाप, दूर होंगे सारे संकट
महाबली हनुमान एकमात्र ऐसे देवता हैं जो आज भी सशरीर धरती पर मौजूद हैं. इन्हें भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है. मान्यता है कि हनुमान जी की कृपा से सभी तरह के संकट पल भर में दूर हो जाते हैं, इसीलिए इन्हें संकटमोचन भी कहा जाता है. बड़े-बड़े पर्वतों को उठाने वाले, समुद्र को पार करने वाले और भगवान के काम को स्वयं संवारने वाले हनुमान जी की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. हनुमान जी की पूजा के लिए मंगलवार का दिन सबसे अच्छा माना जाता है. इस दिन हनुमान जी की पूजा और आराधना का विशेष महत्व होता है. वहीं अगर आप किसी बात को लेकर परेशान हैं या परेशानियों से मुक्ति चाहते हैं तो हर मंगलवार हनुमान अष्टक का पाठ करें. इससे आपको चमत्कारी लाभ मिलेगा. यहां हनुमान अष्टक के बोल और इसके लाभ दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप इसका पाठ कर सकते हैं...
हनुमान अष्टक के लाभ
हनुमान अष्टक का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है. ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ हनुमान अष्टक का पाठ करता है तो उसे सभी तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।अगर आप शत्रु या किसी अन्य भय से परेशान हैं तो नियमित रूप से हर मंगलवार को हनुमान अष्टक का पाठ करें।
हनुमान अष्टक पाठ के नियम
अगर आप हनुमान अष्टक का पाठ करने की सोच रहे हैं तो पाठ करने के स्थान पर हनुमान जी की तस्वीर के साथ भगवान श्री राम की तस्वीर भी रखें।
इसके बाद तस्वीरों के सामने घी का दीपक जलाएं।
तांबे के लोटे या गिलास में जल भरें।
फिर पूरी आस्था और भक्ति के साथ हनुमान जी का ध्यान करें और पाठ शुरू करें।
हनुमान अष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥
दोहा
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर I