आर्थिक तंगी से है परेशान तो वीडियो में बताई विधि से करे शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का जाप, घर के कोने-कोने में धन का ढेर लगा देंगे महादेव
सनातन धर्म में भगवान शिव को सभी देवताओं में सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त है। भगवान शिव सौम्य और सरल हृदय वाले देवता हैं, इसलिए भोलेनाथ को प्रसन्न करना सबसे आसान है। कहते हैं कि जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से महादेव की स्तुति करता है, शिव जी की कृपा उस पर सदैव बनी रहती है। वैसे तो शिवलिंग पर केवल एक लोटा जल चढ़ाने से ही शिव अपने भक्तों की पुकार सुन लेते हैं। लेकिन शिव के मंत्रों का जाप करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में भगवान शिव के अनेक मंत्रों का उल्लेख मिलता है, जिसमें 'श्री शिव रुद्राष्टकम' का पाठ शक्तिशाली और महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि 'श्री शिव रुद्राष्टकम' का पाठ करने का प्रभाव तुरंत होता है। आइए पंडित इंद्रमणि घनश्याम से जानते हैं 'श्री शिव रुद्राष्टकम' के पाठ का महत्व और जाप की विधि।
श्री शिव रुद्राष्टकम पाठ का महत्व
शास्त्रों में शिव रुद्राष्टकम पाठ का महत्व बताया गया है। शिव रुद्राष्टकम भगवान शिव के स्वरूप और शक्तियों पर आधारित है। भगवान श्री राम ने भी रावण जैसे शत्रु पर विजय पाने के लिए शिव रुद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया था। जिसके फलस्वरूप श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। शिव रुद्राष्टकम का जाप करने से बड़े से बड़े शत्रु पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
शिव रुद्राष्टकम की जप विधि
शास्त्रों में वर्णित है कि शिव रुद्राष्टकम का नियमित जाप करने से सभी संकट पल भर में दूर हो जाते हैं। कहा जाता है कि शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से महादेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से जीवन आनंदमय रहता है और व्यक्ति का मनोबल और सौभाग्य बढ़ता है। शिव रुद्राष्टकम का पाठ शिव मंदिर या घर में भगवान शिव की मूर्ति के सामने करना चाहिए। इस पाठ का फल तभी प्राप्त होगा जब इसका लगातार 7 दिनों तक सुबह-शाम पाठ किया जाए।
शिव रुद्राष्टकम पाठ
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्
निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो