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कैसे अहंकारी मनुष्य खुद को मानने लगता है सबसे श्रेष्ठ ? लीक्ड फुटेज में ओशो से जाने कैसे बचे इस भाव से 

कैसे अहंकारी मनुष्य खुद को मानने लगता है सबसे श्रेष्ठ ? लीक्ड फुटेज में ओशो से जाने कैसे बचे इस भाव से 

अहंकार, एक ऐसा मानसिक और भावनात्मक भाव है, जो इंसान को धीरे-धीरे एक झूठी श्रेष्ठता की भावना में ढकेल देता है। यह वह भावना है जब कोई व्यक्ति अपने अस्तित्व, ज्ञान, पद, शक्ति या संपत्ति को दूसरों से ऊंचा समझने लगता है। यह भाव धीरे-धीरे व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित बना देता है, और वह अपने आसपास के लोगों को तुच्छ समझने लगता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि इंसान में यह भाव कैसे पनपता है, इसके क्या नुकसान हैं और इससे बाहर निकलने के क्या उपाय हो सकते हैं।


कैसे जन्म लेता है अहंकार?
अहंकार का जन्म कई कारणों से होता है। जब कोई व्यक्ति लगातार प्रशंसा, सफलता या पद-प्रतिष्ठा पाता है, तो वह धीरे-धीरे खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगता है। उसे लगता है कि वही सबसे ज़्यादा योग्य, समझदार या ताकतवर है। यह भावना कभी-कभी बचपन से ही पैदा हो जाती है जब किसी को घर या स्कूल में विशेष तवज्जो दी जाती है, या फिर समाज में कुछ उपलब्धियों के कारण उसके प्रति अलग व्यवहार किया जाता है।संत ओशो कहते हैं कि अहंकार "मैं" की भावना से उपजता है। जब इंसान बार-बार सोचता है "मैंने यह किया", "मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता", तब वह अपने अंदर एक ऐसा भ्रम पैदा कर लेता है जो उसे दूसरों से अलग और ऊंचा दिखाने की कोशिश करता है। यह 'मैं' धीरे-धीरे 'सिर्फ मैं' बन जाता है, और यही अहंकार का सबसे खतरनाक रूप होता है।

श्रेष्ठता की भावना कैसे बदल देती है इंसान को?
जब कोई व्यक्ति अपने आपको दूसरों से बेहतर समझता है, तो उसके व्यवहार में अहम, तानाशाही और संवेदनहीनता आने लगती है। वह दूसरों की राय को कमतर मानने लगता है, सलाह लेने से कतराता है और आलोचना को अपमान समझता है। वह अपनी गलती को स्वीकार करने से डरता है, क्योंकि उसे लगता है कि उससे गलती हो ही नहीं सकती।इस श्रेष्ठता की भावना के कारण वह समाज, परिवार और दोस्तों से धीरे-धीरे कटने लगता है। उसकी बातें सुनने वाले लोग या तो चापलूसी करते हैं या दूरी बना लेते हैं। रिश्ते बिगड़ने लगते हैं, और वह व्यक्ति भीतर से अकेला होता चला जाता है, लेकिन बाहर से अपने झूठे आत्मसम्मान को बनाए रखने की कोशिश करता रहता है।

अहंकार के नुकसान
रिश्तों में दूरी: अहंकारी व्यक्ति के रिश्ते अक्सर बिगड़ जाते हैं। वह किसी से भी सलाह नहीं लेता और अपनी बात थोपने की कोशिश करता है।
सीखने की क्षमता घटती है: जब कोई यह मान लेता है कि वह सबकुछ जानता है, तो वह नई बातें सीखने की जिज्ञासा खो देता है।
अकेलापन: धीरे-धीरे लोग उससे दूरी बनाने लगते हैं, और वह अकेला महसूस करने लगता है।
आत्मिक अशांति: अहंकार बाहरी रूप से शक्ति का भ्रम दे सकता है, लेकिन अंदर से व्यक्ति अशांत, असुरक्षित और तनावग्रस्त होता है।

कैसे बचा जाए इस भावना से?
स्वीकार करें कि आप पूर्ण नहीं हैं: हर इंसान में कमियां होती हैं। उन्हें स्वीकार करना विनम्रता की ओर पहला कदम है।
ध्यान और आत्मचिंतन: रोज कुछ समय मौन में बिताइए, ध्यान कीजिए। यह आपको अपने भीतर की आवाज़ से जोड़ता है, और अहंकार को शांत करता है।
आलोचना को अपनाएं: आलोचना को दुश्मनी नहीं, बल्कि आत्मसुधार का अवसर मानिए।
सर्वश्रेष्ठ बनने की बजाय बेहतर बनने की कोशिश करें: तुलना छोड़ें और अपने कल से बेहतर आज बनाने पर ध्यान दें।
सेवा और दया का अभ्यास करें: जब आप दूसरों की सेवा करते हैं, तो आपका अहंकार गलता है और आप अपने भीतर की सच्ची मानवीयता से जुड़ते हैं।

ओशो का दृष्टिकोण
ओशो के अनुसार अहंकार एक "फॉल्स सेंटर" है — एक झूठा केंद्र जो असली आत्मा की जगह ले लेता है। वह कहते हैं कि जैसे ही व्यक्ति खुद को ब्रह्मांड का केंद्र मानने लगता है, वह गलत रास्ते पर चल पड़ता है। ओशो अहंकार को छोड़कर आत्मा से जुड़ने की बात करते हैं — जहां कोई तुलना नहीं, कोई संघर्ष नहीं और कोई द्वंद्व नहीं होता।

निष्कर्ष
अहंकार एक ऐसी अदृश्य दीवार है, जो इंसान को खुद के ही अंदर कैद कर देती है। यह दीवार दिखने में सशक्त लगती है, लेकिन असल में यह व्यक्ति को कमजोर बना देती है। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है – आत्मचिंतन, विनम्रता और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता। खुद को बेहतर बनाना अहंकार नहीं, आत्मविकास है — और यही सच्चे जीवन की दिशा है।

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