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मंगल दोष और ग्रह पीड़ा से मुक्ति दिलाता है हनुमानाष्टक, 2 मिनट के शानदार वीडियो में जाने जानिए पाठ की रहस्यमयी शक्ति

रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की कर्मस्थली अयोध्या, काशी और चित्रकूट थी। तुलसीदास उस समय राम कथा का गुणगान किया करते थे। भक्तजन भाव-विभोर होकर उसे सुनने वहां आते थे। कहा जाता है कि राम कथा सुनने वालों में एक कोढ़ी रामरसिक भी प्रतिदिन वहां कथा सुनने आता था। कथा पूरी होने के बाद वह चुपचाप वहां से चले जाते थे। एक दिन काशी के वन में भगवान राम की स्तुति करने के बाद तुलसीदास ने उस कोढ़ी राम कथा भक्त के पीछे चलने का निर्णय लिया। कथा सुनने के बाद जब सभी लोग वहां से चले गए तो तुलसीबाबा ने उस व्यक्ति के चरण पकड़ लिए और श्रद्धापूर्वक उससे अपने वास्तविक रूप में प्रकट होने का अनुरोध किया। भक्ति से अभिभूत होकर भगवान शिव के अवतार अंजनीसुत हनुमान वहां प्रकट हुए।


तुलसीदास अपने इष्टदेव को अपने सामने देखकर धन्य हो गए। जिसके बाद हनुमानजी की प्रेरणा से उन्होंने कई अमर रचनाओं के साथ ही हनुमानाष्टक की भी रचना की। कहा जाता है कि जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने बजरंगबली के दर्शन किए थे, वहां आज संकटमोचन हनुमान मंदिर बना हुआ है। कलियुग में ही नहीं बल्कि हर युग में हनुमान को अपने भक्तों के सभी संकट दूर करने वाले देवता माना जाता है। यही वजह है कि उन्हें संकटमोचन नाम से भी पुकारा जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश कुमार शर्मा ने बताया कि जहां हनुमानजी ने तुलसीदासजी को दर्शन दिए थे, वहां तुलसीबाबा के आग्रह पर वे मूर्ति रूप में स्थापित हो गए। तुलसी बाबा ने अपने भक्तों के सभी संकट दूर करने के लिए हनुमान अष्टक की रचना की थी। 8 पंक्तियों की यह प्रार्थना हनुमान को उनकी शक्तियों का बोध कराती है। इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों के सभी संकट दूर कर देते हैं। बचपन में नटखट हनुमान अपनी सारी शक्तियों का प्रयोग बाल-क्रीड़ा में कर देते थे। इस पर ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि जब तक उन्हें उनकी शक्तियों का स्मरण नहीं कराया जाएगा, तब तक वे शक्तियां विस्मृत ही रहेंगी। रामचरितमानस में भी जामवंत ने महाबली हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण कराया था।

हनुमान अष्टक 
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥

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