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अहंकार से भी ज्यादा खतरनाक होता है उससे जन्मा क्रोध, 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में जानिए इसपर काबू पाने का तरीका 

अहंकार से भी ज्यादा खतरनाक होता है उससे जन्मा क्रोध, 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में जानिए इसपर काबू पाने का तरीका 

जीवन में कई बार हम खुद को इतना महत्वपूर्ण मानने लगते हैं कि हमें लगता है – "मैं सही हूं, मैं सबसे बेहतर जानता हूं।" यही सोच धीरे-धीरे हमारे भीतर अहंकार का बीज बोती है। लेकिन ओशो के अनुसार, यह अहंकार जितना खतरनाक होता है, उससे भी ज्यादा विनाशकारी होता है उससे उपजा क्रोध। यह क्रोध न केवल हमारी सोच और व्यवहार को दूषित करता है, बल्कि हमारे रिश्तों, करियर और मानसिक शांति को भी बर्बाद कर देता है।


अहंकार और क्रोध का गहरा रिश्ता
ओशो कहते हैं कि क्रोध अपने आप में कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है। वह केवल अहंकार की एक परछाई है। जब भी हमारा अहंकार आहत होता है, हम क्रोधित हो उठते हैं। कोई अगर हमारी बात काट देता है, हमारी बात न माने, या हमें गलत ठहराए, तो भीतर एक ज्वाला सुलग उठती है – "इन्होंने मेरी बात को कैसे नकारा?" ये "मेरी" की भावना ही असली अहंकार है, और जब उस पर चोट पहुंचती है, तब पैदा होता है क्रोध।इसलिए ओशो कहते हैं कि क्रोध से निपटने की कोशिश करने से पहले यह समझना जरूरी है कि वह कहाँ से आ रहा है। अगर आप क्रोध की लहरों से लड़ेंगे, लेकिन उनके स्त्रोत यानी अहंकार को नहीं पहचानेंगे, तो यह लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी।

क्रोध सिर्फ दूसरों पर नहीं, खुद पर भी पड़ता है भारी
क्रोध का असर केवल सामने वाले पर नहीं पड़ता, बल्कि उससे पहले यह आपको ही भीतर से जलाता है। ओशो एक सुंदर उदाहरण देते हैं – “क्रोध करना ठीक वैसा ही है जैसे किसी और को चोट पहुंचाने के इरादे से खुद जहर पी लेना।” आप सोचते हैं कि आप दूसरे को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन असल में आप खुद को ही खा रहे होते हैं।क्रोध में लिए गए निर्णय हमेशा अधूरे, जल्दबाज़ और पश्चाताप से भरे होते हैं। रिश्ते टूटते हैं, आत्म-सम्मान गिरता है और भीतर एक गहरा अपराधबोध रह जाता है।

कैसे पाएं इस क्रोध पर नियंत्रण? ओशो के उपाय
ओशो के अनुसार, क्रोध से निपटने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। suppression (दबाना) कभी समाधान नहीं है। बल्कि हमें उसे समझकर transform (रूपांतरित) करना सीखना होगा।
ध्यान (Meditation) का अभ्यास करें – ओशो कहते हैं कि अगर आप रोज 20-30 मिनट भी चुपचाप बैठ जाएं, अपनी सांसों को देखें, तो आप खुद को भीतर से देखने लगेंगे। क्रोध आने से पहले ही आपको उसकी आहट मिल जाएगी और आप उससे खुद को अलग कर पाएंगे।

क्रोध को दबाएं नहीं, बल्कि उसे साक्षीभाव से देखें – जब आप क्रोधित हों, तो खुद से कहें – "मैं क्रोधित हूं।" बस इस भाव से देखिए। उस क्रोध में मत डूबिए। धीरे-धीरे आप पाएंगे कि वह ऊर्जा आपके भीतर से गुजर रही है लेकिन आप उससे अछूते रह पा रहे हैं।

शारीरिक रचनात्मकता का सहारा लें – ओशो ने अपने ध्यान शिविरों में कई बार बताया है कि अगर क्रोध बहुत गहरा है, तो उसे बाहर निकालने के लिए आप अकेले में चिल्ला सकते हैं, तकिये पर मुक्के मार सकते हैं, दौड़ सकते हैं। इसका मकसद है – उसे दबाना नहीं, लेकिन दूसरों को नुकसान पहुंचाए बिना बाहर निकालना।

हास्य और स्वीकार का भाव रखें – जीवन को ज्यादा गंभीरता से लेना ही अहंकार की शुरुआत होती है। अगर आप हर बात को थोड़ा हल्के अंदाज़ में लें, हँसना सीखें, अपने ऊपर भी हँस सकें, तो क्रोध का कोई आधार ही नहीं बचेगा।

मूल कारणों की पहचान करें – क्या आपका क्रोध वास्तव में सामने वाले की गलती पर है या यह आपके असुरक्षा भाव, बचपन कीconditioning या भीतर के अधूरेपन से उपजा है? जब आप गहराई में जाकर कारण को समझते हैं, तो क्रोध स्वत: ही गायब होने लगता है।

क्रोध पर काबू यानी जीवन पर काबू
ओशो मानते हैं कि जो व्यक्ति अपने क्रोध को समझ गया, उसने जीवन को समझ लिया। क्योंकि क्रोध वह स्थान है जहां व्यक्ति अपना असली चेहरा भूलकर केवल प्रतिक्रिया करता है। लेकिन जब आप प्रतिक्रियाओं से हटकर प्रतिक्रियाशून्य अवस्था में आ जाते हैं, तो वही क्षण आपकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत बन जाता है।अहंकार के बीज को पहचानकर जब आप उसे पानी देना बंद कर देते हैं, तो क्रोध रूपी वृक्ष भी सूख जाता है। यही ओशो का संदेश है – भीतर उतरिए, खुद को जानिए और तब आप पाएंगे कि क्रोध का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा।

अहंकार और क्रोध एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ओशो की दृष्टि में इनसे लड़ना नहीं, इन्हें समझना ही समाधान है। जब आप क्रोध को दबाते नहीं बल्कि साक्षी बनकर देखते हैं, तब वह रूपांतरित हो जाता है। ध्यान, स्वीकृति और गहराई से निरीक्षण ही आपको उस आंतरिक शांति की ओर ले जाएगा, जहां क्रोध नहीं, केवल प्रेम और करुणा का वास होता है।अगर आप भी बार-बार गुस्से में आकर पछताते हैं, तो ओशो के बताए मार्ग पर चलने की कोशिश करें — शायद आप भी खुद से मिलने की दिशा में पहला कदम रख सकें।

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