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गरुड़ पुराण के अनुसार सुबह उठकर जरूर करें ये 5 शुभ कार्य दिनभर सफलता चूमेगी आपके कदम, वीडियो में जानिए क्या है वो ?

गरुड़ पुराण के अनुसार सुबह उठकर जरूर करें ये 5 शुभ कार्य दिनभर सफलता चूमेगी आपके कदम, वीडियो में जानिए क्या है वो ?

हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्व है, और इनमें से एक है गरुड़ पुराण, जिसे धर्म, नीति और मृत्यु के बाद की स्थितियों को समझाने वाला सबसे रहस्यमयी ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल मृत्यु और पितृलोक से जुड़े रहस्यों को उजागर करता है, बल्कि जीवित रहते हुए धर्म, नीति, स्वास्थ्य और दिनचर्या से जुड़ी कई उपयोगी बातें भी बताता है।गरुड़ पुराण के अनुसार, सुबह की शुरुआत का सीधा संबंध व्यक्ति के पूरे दिन और उसके कर्मों से होता है। यदि दिन की शुरुआत सही कर्मों से की जाए तो न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार होता है। शास्त्रों में ऐसे 5 विशेष कार्यों का उल्लेख किया गया है जिन्हें सुबह उठते ही करना शुभ माना गया है। आइए जानते हैं क्या हैं वो पांच कार्य और इनके पीछे की आध्यात्मिक व वैज्ञानिक मान्यता क्या है।


1. धरती को प्रणाम करें (धरती माता से क्षमा याचना)
गरुड़ पुराण के अनुसार, सुबह बिस्तर से उठते ही धरती माता को स्पर्श करने से पहले उन्हें प्रणाम करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पूरी रात धरती माता हमें अपने ऊपर सुला कर सहन करती हैं, और बिना अनुमति के उन पर पैर रखना अशुभ माना जाता है।

संस्कृत श्लोक भी है –
"समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे॥"

इसका अर्थ है कि हे पृथ्वी देवी! आप समुद्रों को वस्त्र की भांति धारण करती हैं, पर्वत आपके स्तन हैं और आप भगवान विष्णु की पत्नी हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूं, कृपया मेरे पैरों के स्पर्श को क्षमा करें।यह कार्य केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी मन में विनम्रता और कृतज्ञता का भाव जाग्रत करता है, जिससे दिन की शुरुआत सकारात्मक रूप से होती है।

2. अपने दोनों हथेलियों को देखें (कर दर्शन)
गरुड़ पुराण के अनुसार सुबह सबसे पहले अपनी हथेलियों को देखना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। कहा गया है कि हथेलियों में लक्ष्मी, सरस्वती और गोविंद का वास होता है। इसे "कर-दर्शन" कहा जाता है।

श्लोक:
"कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविंदः प्रभाते करदर्शनम्॥"
इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि हथेलियों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती और मूल भाग (आधार) में भगवान विष्णु का वास होता है। अतः दिन की शुरुआत अपने ही हाथों को देखकर करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और अपने कर्मों पर विश्वास आता है।

3. जलपान से पहले ध्यान या ईश्वर का स्मरण
गरुड़ पुराण में सुबह स्नान से पूर्व अथवा जलपान से पहले ईश्वर का नाम लेने को अत्यंत शुभ माना गया है। चाहे वह कोई मंत्र हो, गायत्री मंत्र का जप हो, ओम का उच्चारण हो या केवल “हरि ओम” कहकर ईश्वर को याद करना – यह आपके मस्तिष्क को शांत और केंद्रित करता है।आध्यात्मिक रूप से इसका अर्थ है कि दिन का आरंभ ईश्वरीय ऊर्जा के साथ हो। आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि सुबह उठते ही ध्यान करने से मानसिक तनाव कम होता है और एकाग्रता बढ़ती है।

4. गाय को रोटी या पक्षियों को दाना देना
गरुड़ पुराण में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सुबह किसी जीव की सेवा करना पुण्य प्रदान करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। विशेषकर गाय को रोटी, कुत्ते को बिस्किट या पक्षियों को दाना देने की परंपरा अत्यंत शुभ मानी जाती है।गाय को रोटी देने से पितृ दोष और शुक्र ग्रह के दोष शांति की ओर बढ़ते हैं। वहीं, पक्षियों को दाना देने से राहु-केतु जैसे ग्रह शांत होते हैं और मानसिक उलझनों में राहत मिलती है।

5. बड़ों के चरण स्पर्श करना और आशीर्वाद लेना
दिन की शुरुआत अपने माता-पिता, गुरु या घर के बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके करने से गरुड़ पुराण के अनुसार न केवल आशीर्वाद मिलता है, बल्कि परिवार में सुख, सौहार्द और सकारात्मकता बनी रहती है। यह कर्म व्यक्ति में संस्कार, अनुशासन और विनम्रता को मजबूत करता है।विज्ञान के दृष्टिकोण से भी चरण स्पर्श करने से व्यक्ति के मस्तिष्क में डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे हार्मोन्स का स्त्राव होता है, जो मूड को बेहतर बनाते हैं और तनाव कम करते हैं।

गरुड़ पुराण में बताई गई ये पांच सुबह की आदतें केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं हैं, बल्कि ये एक स्वस्थ, संतुलित और सकारात्मक जीवनशैली की ओर संकेत करती हैं। आधुनिक भागदौड़ और तनावपूर्ण जीवन में जहां लोग दिन की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन देखकर करते हैं, वहां इन छोटे-छोटे शास्त्रीय उपायों से दिन को बेहतर और शुभ बनाया जा सकता है।यदि हम रोज़ इन 5 शुभ कार्यों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें, तो ना केवल हमारा दिन अच्छा बीतेगा, बल्कि मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और कर्मों की पवित्रता भी बनी रहेगी। गरुड़ पुराण की यह शिक्षा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी प्राचीन काल में थी – क्योंकि आत्मा और आस्था का संबंध समय से नहीं, संस्कारों से जुड़ा होता है।

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