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तीर्थयात्रा के दौरान मासिक धर्म आ जाए तो दर्शन करने चाहिए या नहीं, जानिए प्रेमानंद महाराज ने क्या बताया

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यह सृष्टि ईश्वर की रचना है और मनुष्य जन्म भी एक दुर्लभ अवसर है। यही कारण है कि मनुष्य युगों से अपने सृष्टिकर्ता के प्रति आभार प्रकट करने के विभिन्न मार्ग अपनाता आ रहा है। कोई मंदिर जाकर ईश्वर को स्मरण करता है, कोई हवन-यज्ञ करता है, कोई गरीबों की सेवा में ईश्वर को देखता है, तो कोई तीर्थ यात्रा कर आत्मिक शांति और मोक्ष की कामना करता है। इसी संदर्भ में प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज का एक सत्संग वीडियो इन दिनों तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वे तीर्थ यात्रा की आध्यात्मिक महत्ता और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि को बड़े सरल लेकिन गहन शब्दों में समझाते हैं।

क्या तीर्थ यात्रा पर जाना ज़रूरी है?

प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने सवाल किया कि क्या तीर्थ यात्रा पर जाना जरूरी है? इस पर उन्होंने जो उत्तर दिया, वो न केवल भक्त के लिए, बल्कि हर धर्म प्रेमी के लिए अत्यंत उपयोगी है। महाराज जी ने कहा: "जैसे मेहंदी की लालिमा आपको उसके पेड़ को चीरकर देखने पर नहीं मिलेगी, वैसे ही तीर्थ स्थलों की पवित्रता को केवल बाहरी दृष्टि से नहीं समझा जा सकता। वहां पर जाकर स्नान-ध्यान, नियम और संयम के साथ साधना करेंगे, तभी उस स्थान की दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होगा।"

तीर्थ यात्रा क्यों है आत्मा का शुद्धिकरण

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, तीर्थ स्थलों पर जाने से न केवल पापों का क्षय होता है, बल्कि जीवन में नयी ऊर्जा और उत्साह भी प्राप्त होता है। अक्सर हम जीवन में अनजाने में कई त्रुटियाँ कर बैठते हैं – बोल, व्यवहार या विचार से। तीर्थ यात्रा उस अवसर को प्रदान करती है, जहां हम आत्ममंथन कर सकते हैं और मन-शरीर-आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।

नियमित उपवास और संयम से बढ़ती है प्रभावशीलता

महाराज जी का कहना है कि जब आप तीर्थ यात्रा पर जाएं, तो केवल दर्शन ही नहीं, बल्कि संयमित जीवनशैली भी अपनाएं। जैसे:

  • यदि यात्रा 3 दिन की हो, तो पहले दिन फलाहार लें

  • शेष दिनों में सात्विक भोजन करें

  • पूरे समय मौन, ध्यान, मंत्र जाप और भजन में मन लगाएं

इससे यात्रा केवल एक भ्रमण नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभव बन जाएगी।

पवित्र जल और ध्यान का प्रभाव

भारत के हर तीर्थ स्थल पर जल का विशेष स्थान है – चाहे वो गंगा हो, यमुना, गोदावरी या पवित्र कुंड। इन स्थानों पर स्नान करते समय व्यक्ति ना केवल शरीर की अशुद्धियों से मुक्त होता है, बल्कि ध्यानपूर्वक स्नान करने से मन की व्यग्रता और अवसाद भी दूर होता है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि तीर्थ यात्रा केवल परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चिकित्सा है। यह उन विचारों को नष्ट करती है जो हमें ईश्वर से दूर करते हैं।

तीर्थ यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति संभव

धार्मिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि तीर्थ यात्रा करने से व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। पवित्र स्थल पर एक दिन बिताना, घर पर सौ दिन पूजा करने से श्रेष्ठ होता है – ऐसा मान्यता है। तीर्थ स्थल आत्मा को उसके मूल स्वरूप – शुद्धता, प्रेम और शांति की ओर लौटाने का माध्यम हैं।

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