आंध्र प्रदेश में घटती प्रजनन दर चिंता का विषय, ‘दूसरे बच्चे से आगे’ प्रोत्साहन नीति पर विचार
अमरावती, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। आंध्र प्रदेश भारत की तुलना में तेज़ी से वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहा है। भविष्य में संभावित जनसांख्यिकीय संकट से बचने के लिए राज्य सरकार “दूसरे बच्चे से आगे” प्रोत्साहन नीति पर विचार कर रही है। यह जानकारी एक शीर्ष अधिकारी ने गुरुवार को दी।
आंध्र प्रदेश की औसत (मीडियन) आयु 32.5 वर्ष है, जबकि राष्ट्रीय औसत 28.4 वर्ष है। राज्य की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर 1.5 रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से काफी नीचे है। इससे राज्य की स्थिति उन विकसित देशों जैसी होती जा रही है, जो गंभीर जनसांख्यिकीय संकट का सामना कर रहे हैं।
अधिकारियों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के पास वर्ष 2040 तक ही एक सीमित “डेमोग्राफिक विंडो” है, जिसके बाद निर्भर आबादी का अनुपात बुजुर्गों की ओर तेजी से झुक जाएगा।
इन चिंताजनक रुझानों को राज्य के स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं परिवार कल्याण सचिव सौरभ गौर ने यहां आयोजित 5वें कलेक्टर्स कॉन्फ्रेंस में रेखांकित किया। उन्होंने ‘स्वर्ण आंध्र विजन 2047’ के तहत ‘पाड़ी सूत्रालु’ (10 बिंदु) में तीसरे सूत्र के रूप में जनसंख्या प्रबंधन और मानव संसाधन विकास के लिए राज्य की परिवर्तनकारी रणनीति प्रस्तुत की। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण से हटकर जनसंख्या स्थिरता की ओर नीति बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया।
मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने राज्य में गिरती प्रजनन दर और समग्र स्वास्थ्य परिणामों में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। कभी परिवार नियोजन अभियानों के अग्रदूत रहे नायडू ने कहा कि मौजूदा जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने के लिए नीति प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव जरूरी है।
सौरभ गौर ने कहा, “आज हम वही समस्या झेल रहे हैं, जिससे विकसित देश गुजर रहे हैं, कामकाजी उम्र की आबादी का घटता अनुपात। अब हमारा ध्यान परिवारों को बच्चे पैदा करने के लिए सक्षम और प्रोत्साहित करने पर होना चाहिए।” उन्होंने फ्रांस और हंगरी की तर्ज पर “दूसरे बच्चे से आगे” प्रोत्साहन मॉडल अपनाने का सुझाव दिया, ताकि टीएफआर में गिरावट रोकी जा सके।
एक अहम पहल के तहत उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में प्रजनन चिकित्सा के लिए ‘फर्टिलिटी कॉलेज’ को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित करने की योजना भी पेश की। यह अपनी तरह की पहली पहल होगी, जिसके तहत विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया जाएगा और निःसंतान दंपतियों को राज्य समर्थित आईवीएफ उपचार उपलब्ध कराया जाएगा।
सचिव ने जनसंख्या प्रबंधन के लिए जीवन-चक्र आधारित व्यापक रणनीति भी बताई, जिसमें पांच प्रमुख स्तंभ शामिल हैं, सहायक प्रजनन पारिस्थितिकी तंत्र, ‘संचारा चिकित्सा’ अवधारणा के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य सेवा, कक्षा 6 से शुरू होने वाली ‘स्किल पासपोर्ट सिस्टम’ के जरिए आजीवन कौशल विकास, सुरक्षित परिवहन और प्रमुख और कार्यस्थलों पर अनिवार्य क्रेच के जरिए महिला कार्यबल भागीदारी को प्रोत्साहन और मंडल स्तर पर ‘एल्डरली क्लब’ की स्थापना के माध्यम से सक्रिय वृद्धावस्था।
उन्होंने बताया कि महिला कार्यबल भागीदारी दर को मौजूदा 31 प्रतिशत से बढ़ाकर पुरुषों के 59 प्रतिशत के बराबर करने से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके लिए महिला-अनुकूल परिवहन व्यवस्था और कार्यस्थलों पर अनिवार्य क्रेच लागू किए जाएंगे, ताकि करियर पर “मातृत्व दंड” कम हो।
स्वास्थ्य क्षेत्र में सचिव ने मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को मौजूदा 30 से घटाकर वैश्विक सर्वश्रेष्ठ स्तर (5 से नीचे, नॉर्वे, पोलैंड और बेलारूस के समान) तक लाने और शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को लगभग 17 से घटाकर 2 से नीचे (सिंगापुर और आइसलैंड के समान) लाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय किए।
--आईएएनएस
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