पूरे साल भर में 7% बच्चों को भी नहीं मिल पाता पर्याप्त भोजन
जयपुर । भारत में बच्चों के स्वास्थ को लेकर बहुत ही गंभीर चिंतन का विषय बना हुआ है । भारत में कुपोषण ने अपने पैर पसारे हुए हैं । कुपोषण के कारण हर साल ना जाने कितने बच्चों की मौत हो जाती है जिस पर काम करने की हर भरपूर कोशिश भारत सरकार कर रही है । पर इस पर हुए सर्वे ने हम सभी को दुविधा और आश्चर्य में दाल दिया है ।
आज हम आपको इससे जुड़ी बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं । आज हम आपको बताने जा रहे हैं की भारत में कुपोषण की दर कितनी ज्यादा है और मात्रऔर अक्क कितने प्रतिशत बच्चों को सही हा आहार मिल पाता है । ऐसे में हमको और भी ज्यादा जागरूक हो जाने की जरूरत है । आइये जानते हैं इस बारे में की क्या कहता है सर्वे ।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से विस्तारपूर्वक करवाए गए देश के पहले नैशनल न्यूट्रिशनल सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 2 साल की उम्र तक के महज 6.4 प्रतिशत बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकार्य डायट यानी पर्याप्त भोजन मिल पाता है। हालांकि देशभर के अलग-अलग राज्यों में यह आंकड़ा अलग-अलग है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए इस सर्वे के नतीजे यह भी बताते हैं कि देशभर के 5 साल तक के करीब 35 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो कमजोर होने के साथ-साथ अपनी उम्र के हिसाब से हाइट में कम हैं। इस एज ग्रुप के करीब 17 प्रतिशत बच्चों का वजन, अपनी हाइट के मुताबिक कम है जबकी 33 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं यानी उम्र के हिसाब से वजन कम है, जबकी सिर्फ 2 प्रतिशत ओवरवेट या मोटापे का शिकार हैं। इनमें से करीब 11 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार भी पाए गए।
5 से 9 साल के एज ग्रुप वाले बच्चों में 22 प्रतिशत बच्चों की हाइट कम है, 10 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं और सिर्फ 4 प्रतिशत बच्चे ओवरवेट या मोटापे का शिकार हैं। हालांकि इस स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है औऱ भारत में बच्चों के न्यूट्रिशन लेवल को बेहतर करने की कोशिश की जा रही है। बच्चों को पर्याप्त भोजन न मिलने के पीछे गरीबी और डायट्री रिस्ट्रिक्शन्स की अहम भूमिका है। इतना ही नहीं सर्वे के नतीजे यह भी बताते हैं कि स्कूल जाने वाले करीब 10 प्रतिशत बच्चे प्री-डायबीटिक हैं यानी डायबीटीज के शुरुआती लक्षणों की चपेट में।