घेंघा की बीमारी नहीं है सामन्य अनदेखी दे बन सकती है कैंसर का कारण
जयपुर । घेंघा बीमारी का नाम हम सभी ने सुन रखा है । यह बीमारी ज़्यादातर गावों में देखि जाती है इसका कारण खानपान की कमी और लापरवाही हो सकती है । अक्सर देखा जाता है की गाँव में बच्चों में या फिर शहरों की उस आबादी जहां पर साफ सफाई और जिनको खानपान से लिए संघर्ष करना पड़ता है वहाँ बच्चों में और काओ बार बड़ों में भी इस बीमारी का होना पाया जाता है ।
घेंघा यानि गोइटर रोग थॉयराइड ग्लैंड के असामान्य तरीके से बढ़ने के कारण होता है। घेंघा रोग अस्थाई भी हो सकता है जो कि समय के साथ खुद ही ठीक हो जाता है लेकिन कुछ कारणों में यह गंभीर होता है । घेंघा अधिकतर आयोडीन की कमी से होता है। इस रोग में गर्दन या ठोड़ी में छोटी या बड़ी सूजन आ जाती है, जिससे गले वाला हिस्सा कुछ फूला हुआ नजर आता है। अगर इसकी अनदेखी की जाए तो यह कैंसर का भी रूप धारण कर लेता है।
क्या हो सकते हैं इस बीमारी के लक्षण ?
- घेंघा होने पर जहां पैदा होता है उस स्थान की खाल के रंग जैसा ही होता है।
- कफ घेंघा होने पर भारी, थोड़े दर्द वाला, छूने में ठंडा, आकार में बड़ा तथा ज्यादा खुजली वाला होता है।
- मेदज घेंघा होने पर खुजली वाला, पीले रंग की, छूने में मुलायम पर बदबूदार,तथा बिना दर्द का होता है।
- मेदज घेंघा होने पर रोगी का मुंह तेल की तरह चिकना होता है तथा उसके गले से हर समय घुर्र-घुर्र जैसी आवाज निकलती रहती है।
- वातज घेंघा होने पर गर्दन में सूजन और सुई के चुभने जैसा दर्द होता है गला और तालु सूखा रहता है ।

क्या हो सकता है इस बीमारी के होने का कारण ?
- घेंघा बहुत अधिक हाइपरथाइरॉडिज्म हार्मोन के स्त्रावित होने या हाइपोथाइरोडिज्म के बहुत कम स्त्रावित होने या एकदम सामान्य होने पर भी हो सकता है। घेंघा रोग होने का मतलब है कि थॉयराइड ग्लैंड एब्नॉर्मल तरीके से बढ़ रही है।
- घेंघा रोग में दूध से बने हुई पदार्थ, ईख के पदार्थ, खट्टी-मीठी चीजें, भारी तथा देर में पचने वाली चीजें, ज्यादा मीठी खाने वाली चीजें, मोटापा बढ़ाने वाला भोजन और ज्यादा रस वाले पदार्थ हानिकारक हैं। ऐसी चीजें घेंघा को बढ़ाने का काम करती हैं।
- घेंघा रोग में पुराना लाल चावल खाने से, पुराना घी, मूंग, परवल, करेला, तथा पुष्टिकारक और जल्दी पचने वाला भोजन करने से लाभ मिलता है। साथ ही आयोडिन की सही मात्रा भी खाने में लेना आवश्यक है।

क्या है इसका इलाज़ ?
नमक- खाने में हमेशा आयोडीन वाला नमक खाने से घेंघा रोग में बहुत लाभ मिलता है।
करजनी- गूंजा या करजनी की जड़ और बीज से निकाला हुआ तेल लगाने से और नाक में डालने से गलग्रंथि और गले की गांठ में लाभ होता है।
अपराजिता- सफेद अपराजिता की जड़ के एक से दो ग्राम चूर्ण को घी में मिश्रित कर पीने से अथवा कटु फल के चूर्ण को गले के अन्दर घर्षण करने से घेंघा रोग शांत होता है।
पीपल- पीपल और थूहर का लेप करने से मेदज घेंघा (मोटापे की वजह से गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।
अरंडी- अरंडी की जड़ को पीसकर चावल के पानी में मिलाकर सुबह-शाम लेप करने से घेंघा रोग ठीक हो जाता है।अमलतास- अमलतास की जड़ को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर गलगंड (घेंघा) तथा गंडमाला (गले की गांठे) पर लेप करने से दोनों रोग ठीक हो जाते हैं।
लाल अरंडी- लाल अरंडी की जड़ को पीसकर चावलों के पानी में मिलाकर लेप करने से घेंघा रोग ठीक हो जाता है।

