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जल्द आएगा अनुवांशिक बीमारी 'ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' का इलाज! कोशिश में जुटे हैं रिसर्चर्स

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हेल्थ न्यूज़ डेस्क,भारतीय शोधकर्ता 'ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' नाम की इस दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी का सस्ता इलाज खोजने की जद्दोजहद में जुटे हैं। भारत में इस बीमारी के 5 लाख से ज्यादा मरीज हैं। डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) मांसपेशियों को प्रभावित करता है। इस जेनेटिक बीमारी की वजह से मांसपेशियां धीरे-धीरे मरने लगती हैं। लंबे समय तक इस स्थिति के बने रहने से मांसपेशियां भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। डीएमडी रोग के कारण पेशियों की कोशिकाओं में 'डिस्ट्रोफिन' नामक प्रोटीन का उत्पादन कम होने लगता है। इतना ही नहीं इस प्रोटीन का उत्पादन भी पूरी तरह बंद हो सकता है। यह स्थिति खासकर लड़कों में देखी जा सकती है। हालांकि दुर्लभ मामलों में यह बीमारी लड़कियों को भी प्रभावित कर सकती है।

न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएमडी का मौजूदा इलाज या तो बहुत कम है या बहुत महंगा है। इस इलाज पर हर साल प्रति बच्चे पर 2-3 करोड़ रुपए तक का खर्च आता है। दवाएं भी ज्यादातर विदेशों से आयात की जाती हैं। सप्लीमेंट्स की कीमत भी बहुत अधिक होती है, जो अधिकांश लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर ने 'डिस्ट्रोफी एनीहिलेशन रिसर्च ट्रस्ट' (डीएआरटी) बेंगलुरु और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जोधपुर के सहयोग से डीएमडी के लिए एक शोध केंद्र स्थापित किया है। इस केंद्र का लक्ष्य इस दुर्लभ और लाइलाज बीमारी का सस्ता इलाज विकसित करना है।

मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाता है

डीएमडी एक 'एक्स लिंक्ड रिसेसिव मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' है, जो लगभग 3500 लड़कों में से एक को प्रभावित करता है। यह धीरे-धीरे मांसपेशियों के ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है। देखा जाता है कि इस जेनेटिक बीमारी से पीड़ित बच्चे 12 साल की उम्र के बाद भी चलने फिरने में असमर्थ हो जाते हैं। चलने-फिरने के लिए उसे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि करीब 20 साल की उम्र में व्यक्ति को सपोर्ट वेंटिलेशन की जरूरत पड़ सकती है। वर्तमान में डीएमडी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, एकीकृत उपचार के माध्यम से इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।


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रोगियों के जीवन काल में वृद्धि

वैज्ञानिकों के अनुसार मांसपेशियों में कमजोरी डीएमडी का मुख्य लक्षण है। यह बीमारी 2 या 3 साल की उम्र में ही बच्चे को अपनी चपेट में लेने लगती है। कुछ समय पहले तक, DMD वाले बच्चे आमतौर पर किशोरावस्था से आगे नहीं रहते थे। हालांकि, हृदय और श्वसन संबंधी देखभाल में हुई प्रगति के कारण ऐसे रोगियों की आयु अब बढ़ रही है।

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