Sheetala Ashtami 2024 कल शीतला अष्टमी पर करें ये खास उपाय, बीमारियों से मिलेगा छुटकारा
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ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन शीतला अष्टमी को खास माना गया है जो कि मां शीतला की पूजा को समर्पित होती है इस दिन भक्त देवी की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं शीतला अष्टमी का व्रत होली के आठ दिनों के बाद किया जाता है
इस बार शीतला अष्टमी का व्रत 2 अप्रैल दिन मंगलवार यानी कल किया जा रहा है इस दिन पूजा पाठ और व्रत का विधान होता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शीतला देवी पार्वती का ही एक रूप हैं और उनकी पूजा जीवन में खुशहाली लेकर आती है इस दिन पूजा पाठ के साथ ही अगर शीतला अष्टम का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो सभी प्रकार के रोगो से साधक को छुटकारा मिल जाता है तो आज हम आपको उन्हीं के बारे में बता रहे हैं।
शीतलाअष्टक पाठ—
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः
॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम् ॥
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति॥
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते॥
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी॥
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥
॥ फल-श्रुति ॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते ॥
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै ॥