
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन कालाष्टमी व्रत को खास माना गया है जो कि हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाई जाती है। यह तिथि भगवान भैरव को समर्पित है जो कि महादेव का ही उग्र रूप माने जाते हैं।
कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के भय और संकट का नाश हो जाता है। मान्यता है कि बाबा भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाते हैं। इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
इस बार कालाष्टमी व्रत 20 फरवरी को मनाया जाएगा। इस शुभ दिन पर बाबा भैरव की पूजा के बाद व्रत कथा जरूर पढ़ें माना जाता है कि ऐसा करने से दोगुना फल मिलता है और मनोकामना हो जाती हैं पूर्ण।
यहां जानें कालाष्टमी की व्रत कथा
शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मदेव को ये अभिमान हो गया और वे स्वयं ही सृष्टि का रचयिता और परमतत्व हैं। वे स्वयं को अन्य सभी देवों से श्रेष्ठ मानने लगे। वेदों से जब ब्रह्मदेव ने इसके बारे में पूछा तो उन्होंने शिवजी को परम तत्व बताया, लेकिन फिर भी ब्रह्मदेव ही स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे।
महादेव ने लिया कालभैरव अवतार
उसी समय एक तेज प्रकाश के साथ पुरुषाकृति वहां प्रकट हुई। महादेव ने उस पुरुषाकृति से कहा कि ‘काल की तरह शोभित होने के कारण आप कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। काल भी आपसे भयभीत रहेगा, अत: आप कालभैरव हैं।’ शिवजी से इतने सारे वरदान पाकर कालभैरव ने अपनी उंगली के नाखून से ब्रह्मा का पांचवां मस्तक काट दिया।
कालभैरव पर लगा ब्रह्महत्या का पाप
ब्रह्मदेव का मस्तक काटने के कारण कालभैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लगा, जिसके कारण ब्रह्मा का मस्तक उनके हाथ से चिपक गया। महादेव ने इस पाप से मुक्ति के लिए कालभैरव को काशी जाने को कहा। जब कालभैरव काशी पहुंचें तो ब्रह्मा का वह मस्तक अपने आप ही उनके हाथ से अलग हो गया। शिवजी ने कालभैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया।
इसलिए मनाते हैं कालभैरव अष्टमी
शिवपुराण के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि पर ही महादेव ने कालभैरव अवतार लिया था, इसलिए हर साल इसी तिथि पर कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। कालभैरव की पूजा सात्विक और तामसिक दोनों रूपों में की जाती है यानी इन्हें मांस-मदिरा का भोग भी लगाया जाता है। इनकी कृपा से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं और किसी तरह का कोई भय भी नहीं सताता।