
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है, लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में पड़ता है। इस दिन भक्त उपवास आदि रखते हुए भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि प्रदोष व्रत शिव साधना को समर्पित है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से प्रभु की कृपा प्राप्त होती है और कष्ट दूर हो जाते हैं।
फाल्गुन प्रदोष व्रत में शिव पार्वती की पूजा अर्चना का विधान होता है मान्यता है कि इनकी आराधना समस्याओं का निवारण कर देती हैं। इस बार भौम प्रदोष व्रत 11 मार्च दिन मंगलवार को पड़ रहा है मंगलवार के दिन प्रदोष पड़ने के कारण ही इसे भौम प्रदोष के नाम से जाना जा रहा है। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ ही अगर पौराणिक कथा का पाठ किया जाए तो व्रत पूजा सफल हो जाती है और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद भी मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं प्रदोष व्रत कथा।
यहां पढ़ें प्रदोष व्रत कथा—
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में ब्रह्मण और ब्राह्मणी रहा करते थे. ब्राह्मण की मृत्यु हो जाने के बाद ब्राह्मणी बेसहारा हो गई. अपने पति की मौत के बाद जीवन यापन करने के लिए ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ भिक्षा मांगने लगी. एक दिन घर लौटते समय ब्राह्मणी ने लड़के को देखा. दरअसल, वो लड़का विदर्भ का राजकुमार था, जो अपनी पिता की मौत के बाद दर-दर भटक रहा था. ब्राह्मणी को उसपर दया आ गई और वो उसको अपने साथ ले आई.
इसके बाद ब्राह्मणी उसका भी पालन-पोषण अपने पुत्र की तरह ही करने लगी. कुछ समय बाद वो अपने दोनों पुत्रों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम गईं, जहां उसने प्रदोष व्रत के बारे में जाना और अपने दोनों पुत्रों के साथ उसका पालन करने लगी. एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र और राजकुमार वन में घूमने गए. वहीं वन में राजकुमार की मुलाकात गंधर्व कन्या अंशुमती से हुई. दोनों में प्रेम हो गया. इसके बाद जब राजुमार अंशुमती के माता-पिता से मिलने पहुंचा तो उन्होंने उसको पहचान लिया.
इसके बाद अंशुमती के माता-पिता ने ही पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा. राजकुमार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार लिया. इसके बाद अंशुमति और विदर्भ के राजकुमार का विवाह हो गया. इसके बाद राजकुमार को गंधर्वों की सहायता मिली, जिससे उसने विदर्भ पर आक्रमण कर अपना राज्य वापस हासिल कर लिया. फिर उसने ब्राह्मणी और उसके पुत्र को अपने राजमहल में बुलाया और उनका आदर सत्कार किया. कुछ समय बाद उसकी पत्नि अंशुमती ने उससे उसके जीवन के बारे में पूछा. तब उसने अपने मुश्किल समय और प्रदोष व्रत की महिमा के बारे में बताया, जिसकी वजह से उसके जीवन के सारे दुख दूर हो गए.