ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: पोंगल का त्योहार दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय पर्व हैं जिसे 14 से 17 जनवरी के बीच मनाया जाता हैं लोहड़ी की तरह इसे भी किसानों द्वारा फसल के पक जाने की खुशी में सेलिब्रेट किया जाता है दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इस त्योहार से जुड़ी एक प्रथा है इस प्रथा के अनुसार लोग घरों से पुराना सामान निकाल कर नया सामान लाते हैं साथ ही नए नए वस्त्र पहनकर इस त्योहार का जश्न मनाया जाता है
जहां उत्तर भारत में लोहड़ी और मकर संक्रांति का महत्व है उसी तरह दक्षिण भारत में पोंगल का एक अलग ही महत्व होता हैं। कहा जाता है कि इसे दक्षिण भारत में नए साल के रूप में भी सेलिब्रेट किया जाता हैं माना जाता है कि ये त्योहार संपन्नता को समर्पित होता हैं इस पर्व का इतिहास 1000 साल से भी पुराना माना गया हैं।
इस त्योहार को चार दिनों तक मनाया जाता है जिसमें पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाते हैं इसी से ही नए साल की शुरुआत भी मानते हैं। इसके तीसरे दिन भगवान शिव के प्रिय नंदी की पूजा करने की प्रथा है इसलिए इस दिन बैलों की पूजा की जाती हैं चौथे यानी आखिरी दिन देवियों की पूजा की जाती हैं इसमें मां लक्ष्मी और मां काली की पूजा की जाती हैं इस दिन धान को एकत्रित करके उसकी पूजा होती हैं कामना की जाती है कि आने वाली फसलें भी अच्छी हो। इस दिन सूर्य देव की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता हैं।
दक्षिण भारत के राज्य केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों में इस पर्व को पोंगल के नाम से जाना जाता है यह त्योहार पोंगल भगवान सूर्य को समर्पित हैं। इस खास अवसर पर पोंगल नाम का भोजन बनाया जाता है जिसमें दूध, चावल,काजूऔर गुड़ जैसी चीजों की मदद ली जाती हैं इन भोजन को नए बत्रन में ही बनाना बेहद ही शुभ माना जाता हैं। त्योहार पर लोग नए वस्त्र तो पहनते ही हैं साथ ही घरों में रंगोलियां भी बनाई जाती हैं साथ ही बैलों और गायों की भी पूजा करना इस त्योहार की प्रथाओं में शामिल हैं।