
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: देवी आराधना का महापर्व नवरात्रि देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ये पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है। जिसमें भक्त मां दुर्गा के नौ अलग अलग रूपों की विधिवत पूजा करते है और व्रत रखते है। मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में देवी मां की आराधना व पूजा भक्तों को विशेष फल प्रदान करती है।
इस बार नवरात्रि का त्योहार 22 मार्च से आरंभ हो रहा है जिसका समापन 30 मार्च यानी रामनवमी के दिन हो जाएगा। ऐसे में मां दुर्गा को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रि के नौ दिनों तक श्री दुर्गा कवच का संपूर्ण पाठ कर सकते है। मान्यता है कि ये चमत्कारी पाठ भक्तों की हर संकट से रक्षा करता है और जीवन में सुख समृद्धि प्रदान करता है, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री दुर्गा कवच पाठ।
श्री दुर्गा कवच—
ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी । दया करके ब्रह्माजी बोले तभी ॥
के जो गुप्त मंत्र है संसार में । हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में ॥
हर इक का कर सकता जो उपकार है । जिसे जपने से बेडा ही पार है ॥
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का । जो हर काम पूरे करे सवाल का ॥
सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ । मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ ॥
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना । जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता ॥
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये । उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये ॥
कहो जय जय जय महारानी की । जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥
पहली शैलपुत्री कहलावे । दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे ॥
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम । चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम ॥
पांचवी देवी अस्कंद माता । छटी कात्यायनी विख्याता ॥
सातवी कालरात्रि महामाया । आठवी महागौरी जग जाया ॥
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने । नव दुर्गा के नाम बखाने ॥
महासंकट में बन में रण में । रुप होई उपजे निज तन में ॥
महाविपत्ति में व्योवहार में । मान चाहे जो राज दरबार में ॥
शक्ति कवच को सुने सुनाये । मन कामना सिद्धी नर पाए ॥
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार । बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार ॥
कहो जय जय जय महारानी की । जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥
हंस सवारी वारही की । मोर चढी दुर्गा कुमारी ॥
लक्ष्मी देवी कमल असीना । ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा ॥
ईश्वरी सदा बैल सवारी । भक्तन की करती रखवारी ॥
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला । हल मूसल कर कमल के फ़ूला ॥
दैत्य नाश करने के कारन । रुप अनेक किन्हें धारण ॥
बार बार मैं सीस नवाऊं । जगदम्बे के गुण को गाऊँ ॥
कष्ट निवारण बलशाली माँ । दुष्ट संहारण महाकाली माँ ॥
कोटी कोटी माता प्रणाम । पूरण की जो मेरे काम ॥
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ । चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ ॥
कहो जय जय जय महारानी की । जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥
अग्नि से अग्नि देवता । पूरब दिशा में येंदरी ॥
दक्षिण में वाराही मेरी । नैविधी में खडग धारिणी ॥
वायु से माँ मृग वाहिनी । पश्चिम में देवी वारुणी ॥
उत्तर में माँ कौमारी जी। ईशान में शूल धारिणी ॥
ब्रहामानी माता अर्श पर । माँ वैष्णवी इस फर्श पर ॥
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो । संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ॥
सन्मुख मेरे देवी जया । पाछे हो माता विजैया ॥
अजीता खड़ी बाएं मेरे । अपराजिता दायें मेरे ॥
नवज्योतिनी माँ शिवांगी । माँ उमा देवी सिर की ही ॥