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Makar Sankranti 2025 पर सूर्यदेव की आरती में कौन सी 2 गलतियां भूलकर भी न करें? एक क्लिक में जानें

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ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन मकर संक्रांति को बहुत ही खास माना जाता है जो कि सूर्य को समर्पित दिन होता है इस दिन स्नान दान और पूजा पाठ का विशेष विधान होता है मान्यता है कि मकर संक्रांति के पावन दिन सूर्य साधना करने से आरोग्यता का वरदान मिलता है और दुख संकट में कमी आती है।

makar sankranti 2025 which two mistakes should not be made while worshipping sun god 

इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस पावन दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा विधिवत पूजा करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और कष्ट दूर हो जाते हैं तो आज हम आपको बता रहे हैं कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य आरती के समय किन गलतियों को करने से बचना चाहिए तो आइए जानते हैं। 

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भगवान सूर्य की आरती से जुड़े नियम—
आपको बता दें कि मकर संक्रांति के शुभ दिन बिना स्नान करें सूर्यदेव की पूजा भूलकर भी न करें ऐसा करने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है। जब सूर्योदय हो तो सबसे पहले तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। मगर इस बात का ध्यान रखें कि जल पैरों में नहीं आना चाहिए। फिर घी का दीपक जलाकर सूर्यदेव की आरती करें अगर आपके मन में कोई इच्छा है तो उसे भी इस दौरान बोल सकते हैं। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्यदेव की आरती और पूजा करने से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। 

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भगवान सूर्यदेव की आरती—

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
सारथी अरूण हैं प्रभु तुम,
श्वेत कमलधारी ।
तुम चार भुजाधारी ॥
अश्व हैं सात तुम्हारे,
कोटी किरण पसारे ।
तुम हो देव महान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
ऊषाकाल में जब तुम,
उदयाचल आते ।
सब तब दर्शन पाते ॥
फैलाते उजियारा,
जागता तब जग सारा ।
करे सब तब गुणगान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
संध्या में भुवनेश्वर,
अस्ताचल जाते ।
गोधन तब घर आते॥
गोधुली बेला में,
हर घर हर आंगन में ।
हो तव महिमा गान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
देव दनुज नर नारी,
ऋषि मुनिवर भजते ।
आदित्य हृदय जपते ॥
स्त्रोत ये मंगलकारी,
इसकी है रचना न्यारी ।
दे नव जीवनदान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
तुम हो त्रिकाल रचियता,
तुम जग के आधार ।
महिमा तब अपरम्पार ॥
प्राणों का सिंचन करके,
भक्तों को अपने देते ।
बल बृद्धि और ज्ञान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
भूचर जल चर खेचर,
सब के हो प्राण तुम्हीं ।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥
वेद पुराण बखाने,
धर्म सभी तुम्हें माने ।
तुम ही सर्व शक्तिमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
पूजन करती दिशाएं,
पूजे दश दिक्पाल ।
तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥
ऋतुएं तुम्हारी दासी,
तुम शाश्वत अविनाशी ।
शुभकारी अंशुमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥
ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ॥
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥

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