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महाशिवरात्रि पर इस कथा के श्रवण से मिलता है विशेष लाभ, पूरा होता है मनचाही इच्छा का वरदान 

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ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन महाशिवरात्रि को बहुत ही खास माना जाता है जो कि शिव को समर्पित दिन है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं। मान्यता है कि इस पावन दिन पर शिव साधना करने से प्रभु की असीम कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार 26 फरवरी को मनाया जाएगा। 

महाशिवरात्रि व्रत कथा—
पूर्व काल की बात है चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वह शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। उस शिकारी पर साहूकार का काफी कर्ज था। लेकिन वह उसका कर्ज समय पर नहीं चुका पाया। फिर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया।

जिस दिन उसे बंदी बनाया गया उस दिन शिवरात्रि थी। चतुर्दशी के दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा सुनी और शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में कहा। उसके बाद वह फिर शिकार की खोज में निकला। बंदीगृह में रहने के कारण वह बहुत भूखा था। शिकार की तलाश में वह बहुत दूर निकल आया। अंधेरा होने पर उसने जंगल में ही रात बिताने का फैसला किया और एक पेड़ पर चढ़ गया।

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उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था जो बेलपत्र के पत्तो से ढका हुआ था। शिकारी को उसके बारे में जानकारी नहीं थी। पेड़ पर चढ़ते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वह शिवलिंग पर गिरती रहीं। इस तरह से भूखे प्यासे रहकर शिकारी का शिवरात्रि का व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। रात के समय एक हिरणी पानी पीने तालाब पर आई। शिकारी जैसे ही उसका शिकार करने जा रहा था भी हिरणी बोली मैं गर्भवती हूं शीघ्र ही प्रसव करुंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे। मैं बच्चे को जन्म देकर तुरंत तुम्हारे सामना आ जाउंगी। तब मुझे मार लेना।

शिकारी ने हिरणी को जाने दिया। इस दौरान अनजाने में कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए। इस तरह उसने अंजाने में प्रथम प्रहर की पूजा भी संपन्न कर ली। कुछ देर बार एक हिरणी उधर से निकली। जैसे ही शिकारी उसे मारने के लिए धनुष बाण चढ़ाया तो हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया ह शिकारी में थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातूर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की तलाश में हूं। अपनी पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। रात का आखिरी पहर बीत रहा था। तब भी कुछ बेल पत्र शिवलिंग पर जा गिरे।

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ऐसे में शिकारी ने अनजाने में ही अंतिम पर की पूजा भी कर ली। इस दौरान वहां एक हिरणी अपने बच्चों के साथ आई। उसने भी शिकारी से निवेदन किया और शिकारी ने उसे जाने दिया। इसके बाद शिकारी के सामने एक हिरण आया। शिकारी ने सोचा अब तो मैं इसे यहां ने नहीं जाने दूंगी इसका शिकार करुंगी। तब हिरण ने उससे निवेदन किया कि मुझे कुछ समय के लिए जीवनदान दे दो। शिकारी ने पूरा रात की घटना उस हिरण को सुना दी। तब हिरण ने कहा कि जिस तरह से तीनों पत्नियां प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। जैसे तुमने उन्हें विश्वापात्र मानकर छोड़ा है मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस तरह सुबह हो गई। उपवास, रात्रि जागरण, और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजान में ही शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। लेकिन, अनजाने में हुई पूजा का परिणाम उसे तत्काल मिला। थोड़ी देर बार हिरण और उसका परिवार शिकारी के सामने आ गया। उन सभी को देखकर शिकारी को बहुत गिलानी हुई और उसने पूरे परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया और उसे शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए। शिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

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