ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में वैसे तो सभी व्रत त्योहारों को बेहद ही खास माना जाता है लेकिन जन्माष्टमी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है आज देशभर में धूमधाम से कृष्ण जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है इस पवित्र दिन पर भक्त रखकर भगवान का पूजन करते हैं मंदिरों में भव्य सजावट होती है और झांकियां भी बनाई जाती है जन्माष्टमी के दिन चारों होर कृष्ण भक्ति का माहौल होता है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भक्त व्रत रखकर विधिवत कान्हा की पूजा करता है उसके जीवन में आने वाली सभी विपत्तियां दूर हो जाती है वही जन्माष्टमी के पवित्र दिन पर श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कष्टों का निवारण हो जाता है, ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए है श्रीकृष्ण चालीसा पाठ।
जानिए कृष्ण चालीसा पाठ की विधि-
आपको बता दें कि आज यानी जन्माष्टमी के शुभ दिन पर कान्हा को माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है आज के दिन घर के बच्चों को भी श्री कृष्ण चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए इससे बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान की भी प्राप्ति होती है इस दिन स्नान ध्यान करने के बाद कृष्ण चालीसा पढ़ना चाहिए।
श्री कृष्ण चालीसा पाठ-
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुरएनील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फलएपिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छविएकृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनयएराखहु जन की लाज॥
चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट.नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोलए चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखिए सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलकए अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पानए पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतलए लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत.लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात.पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण काएपाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फलएलहै पदारथ चारि॥