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आज जन्माष्टमी पर करें अच्युतस्याष्टकमं का पाठ, मुसीबतों से मिलेगा छुटकारा

read achyutashkam path on shri Krishna janmashtami

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः देशभर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की धूम शुरू हो चुकी है आज यानी 19 अगस्त दिन शुक्रवार को जन्माष्टमी का त्योहार उत्साह के साथ मनाया जा रहा है इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं आज यानी जन्माष्टमी पर सभी कृष्ण मंदिरों और कृष्ण भक्तों के घरों पर बाल गोपाल की पूजा आराधना की जाएगी और श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनका विधिवत मनोरम श्रृंगार होगा उनकी पूजा अभिषेक करके पंचामृत का भोग लगाया जाएगा।

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ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन जो भक्त व्रत उपवास करके भगवान का पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ पूजन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं श्रीकृष्ण पूर्ण कर देते हैं भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात 12 बजे हुआ था ऐसे में आज दिनभर लोग व्रत करेंगे और भगवान के पूजन की तैयारियां होगी और रात में पूजा पाठ करके भगवान को श्रृद्धा पूर्वक उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है

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आरती पढ़ी जाती है ऐसे में अगर आप सच्चे मन से अच्युतस्याष्टकमं का पाठ करते हैं भगवान प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं और मुसीबतों से भी छुटकारा दिलाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं संपूर्ण अच्युतस्याष्टकमं का पाठ, तो आइए जानते हैं। 

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 श्री अच्युतस्याष्टकमं पाठ-

अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥1॥
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे
रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो
राघव पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा
केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो
बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं
किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य
वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥


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