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Holi 2025 होली पर भगवान कृष्ण बरसाएंगे कृपा, बस करना होगा ये छोटा सा काम 

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ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू पंचांग का आखिरी महीना यानी फाल्गुन आरंभ हो चुका है और इस महीने में कई बड़े त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें होली भी प्रमुख है। होली का त्योहार रंगों का पर्व माना गया है इस शुभ दिन पर लोग एक दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं देते हैं।

इस साल होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है जो कि इस बार 13 मार्च को पड़ रही है। होली के शुभ दिन पर अगर भगवान कृष्ण और राधा रानी की विधिवत पूजा श्री राधा कृष्ण अष्टकम् का पाठ किया जाए तो भगवान प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और कष्टों को दूर कर देते हैं तो हम आपके लिए लेकर आए हैं,  श्री राधा कृष्ण अष्टकम्  पाठ। 

श्री राधा कृष्ण अष्टकम् पाठ—

चतुर मुखाधि संस्थुतं, समास्त स्थ्वथोनुतं।
हलौधधि सयुतं, नमामि रधिकाधिपं॥

भकाधि दैत्य कालकं, सगोपगोपिपालकं।
मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकाधिपं॥

सुरेन्द्र गर्व बंजनं, विरिञ्चि मोह बंजनं।
वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकाधिपं॥

मयूर पिञ्छ मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं।
नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकाधिपं॥

प्रदथ विप्रदरकं, सुधामधम कारकं।
सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकाधिपं॥

दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं।
इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकाधिपं॥

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मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं।
धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकाधिपं॥

सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षदायिनं।
श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकाधिपं॥

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम्॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम्।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम्॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम्।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम्॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम्।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम्॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम्।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम्॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम्।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम्॥

यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम्।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम्।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम्॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम्॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम्।

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः॥

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