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Chhath Puja 2024 संध्या अर्घ्य के बाद जरूर करें ये एक काम, भगवान सूर्य और छठी मईया की होगी कृपा

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ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन छठ पूजा को बहुत ही खास माना गया है जो कि 36 घंटों का व्रत होता है छठ व्रत को सबसे अधिक कठिन माना गया है। छठ पूजा में साफ सफाई के साथ साथ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है यह पर्व पूरे तीन दिनों तक चलता है। इस दौरान भक्त छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की विधिवत पूजा करते हैं।

Chhath puja vrat katha and significance

पंचांग के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी की 5 नवंबर से हो चुका है और इस व्रत का समापन अष्टमी यानी 8 नवंबर को होगा। इस दौरान छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा अर्चना करना उत्तम माना जाता है। आज यानी 7 नवंबर को छठ का तीसरा दिन है इस दिन भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करने के बाद छठ की व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए माना जाता है कि ऐसा करने से व्रत पूजा सफल होती है और पूर्ण फल मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं व्रत कथा। 

Chhath puja vrat katha and significance

छठ पूजा व्रत कथा—
छठ पूजा से एक पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी मिलती है. इस पौराणिक कथा के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा हुआ करते थे. राजा और उनकी मालिनी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय किए लेकिन नतीजा कुछ न निकला. एक बार संतान प्राप्ति की कामना के लिए राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी महर्षि कश्यप के पास गए और कहा कि हे महर्षि! हमें संतान प्राप्ति का कोई उपाय बताइए.

उनका दुख सुन महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए राजा के यहां यज्ञ का आयोजन करवाया. महर्षि कश्यप ने यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई गई खीर को प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खाने के लिए कहा. राजा ने अपनी पत्नी को वो खीर खिला दी और खीर के प्रभाव से राजा की पत्नी गर्भवती हो गई. फिर 9 महीने बाद रानी को पुत्र लेकिन वह मृत पैदा हुआ. यह देख राजा और उनकी पत्नी और ज्यादा दुखी हो गए. इसके बाज राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का प्रयास करने लगे.

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उसी समय श्मशान में देवी प्रकट हुईं. देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा मैं ब्रह्मा की पुत्री देवसेना हूं. सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. तुम किसलिए परेशान हो मुझे बताओ. राजा ने सारी कहानी बताई. इसके बाद षष्ठी देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि अगर तुम मेरी विधिपूर्वक पूजा करोगे और दूसरों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रेरित करोगे तो तुम्हें अवश्य पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.

राजा ने देवी के कहे अनुसार कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को व्रत रखकर देवी षष्ठी की विधि-विधान से पूजा की और बाकी लोगों को भी षष्ठी देवी की पूजा करने के लिए प्रेरित किया. षष्ठी देवी की पूजा के फलस्वरूप राजा की पत्नी रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुई और 9 महीने बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई. ऐसी मान्यता है कि इसके बाद से ही कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि पर छठ पूजा और व्रत करने की शुरुआत हुई.

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