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​​​​​​​​​​​'क्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है राजनीति?' राहुल गांधी की सेना-विरोधी बयानबाज़ी से उठा बड़ा सवाल

'क्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है राजनीति?' राहुल गांधी की सेना-विरोधी बयानबाज़ी से उठा बड़ा सवाल

देश की सुरक्षा व्यवस्था, सीमाओं पर तैनात हमारे बहादुर जवानों और उनकी नीतियों पर सवाल उठाना विपक्ष का अधिकार हो सकता है, लेकिन जब यह सवाल उठाना सीमाओं पर तैनात बलों के मनोबल को तोड़ने लगे, तो चिंता का विषय बन जाता है। बीते कुछ महीनों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों ने इसी तरह की चिंता को जन्म दिया है। उनकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे राजनीतिक लाभ के लिए देश की सेनाओं के शौर्य और निष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हों।

बार-बार सेना की नीयत पर सवाल

राहुल गांधी ने कई बार सार्वजनिक मंचों से सेना के ऑपरेशनों, उनकी रणनीतियों और सरकार के निर्णयों को कठघरे में खड़ा किया है। इस क्रम में सबसे ताज़ा बयान उस समय आया जब उन्होंने भोपाल की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पाकिस्तान विवाद के समय अमेरिका के दबाव में झुकने का आरोप लगाया। राहुल गांधी ने दावा किया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक फोन कॉल के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 'सरेन्डर' कर दिया। इसके साथ कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से भी एक व्यंग्यात्मक कार्टून पोस्ट किया गया जिसमें ट्रंप प्रधानमंत्री से 'सरेन्डर' करने के लिए कह रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने इस तरह सेना से जुड़ी संवेदनशील घटनाओं पर बयानबाज़ी की हो। पुलवामा हमले के बाद जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी तब भी राहुल गांधी ने 'सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो' मांग कर सेनाओं के पराक्रम पर संदेह जताया था। इसी तरह गलवान घाटी संघर्ष में भारतीय जवानों के बलिदान के समय भी कांग्रेस नेता ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि चीन ने भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है।

पाकिस्तान की हार की अनदेखी

गौर करने वाली बात यह है कि जब भी भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मोर्चे पर करारा जवाब दिया है तब राहुल गांधी और उनकी पार्टी भारतीय सेना के पराक्रम को कमतर आंकते दिखे हैं। बालाकोट स्ट्राइक में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कैम्प तबाह हुए, जिससे पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों पर जबरदस्त असर पड़ा। लेकिन कांग्रेस ने न तो सेना की इस कामयाबी को सराहा और न ही पाकिस्तान के नुकसान की चर्चा की। पाकिस्तानी मीडिया तक ने माना कि भारत के जवाबी हमलों से उनके आतंकी नेटवर्क को गहरा नुकसान हुआ है, लेकिन राहुल गांधी इन उपलब्धियों की अनदेखी कर सरकार की आलोचना करने में व्यस्त रहे। इस रवैये से सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए देशहित से समझौता किया जा रहा है?

वैश्विक घटनाओं से मिलती है सीख

यदि हम दुनिया के अन्य देशों को देखें तो पाएंगे कि युद्ध या संकट के समय सभी राजनीतिक दल सेना के समर्थन में एकजुट हो जाते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध या इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष इसके उदाहरण हैं जहाँ विपक्षी दल भी सेना और सरकार के साथ खड़े दिखे। भारत में भी ऐसा होना चाहिए, लेकिन यहां विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस, अक्सर सेना और सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाकर देश की एकता में सेंध लगाने का काम करते हैं।

देशभक्ति का मतलब शक नहीं समर्थन

भारत की सेना विश्व की सबसे बड़ी और सबसे अनुभवी सेनाओं में से एक है। हमारे जवान हर दिन सीमा पर जान जोखिम में डालकर देश की रक्षा करते हैं। ऐसे में सेना के पराक्रम पर सवाल खड़े करना, उनकी कार्रवाई पर 'साक्ष्य' मांगना न केवल असम्मानजनक है बल्कि इससे दुश्मनों के हौसले भी बुलंद होते हैं। यह सही है कि विपक्ष को सरकार से सवाल पूछने का अधिकार है, लेकिन यह सवाल सेना के मनोबल को गिराने वाले नहीं होने चाहिए। राहुल गांधी के लगातार ऐसे बयानों से न केवल सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल टूटता है बल्कि आम जनता के बीच भी सेना के प्रति अविश्वास का माहौल बनता है। यह स्थिति देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकती है।

कांग्रेस का दोहरा रवैया?

यह बात भी गौर करने लायक है कि कांग्रेस के नेता जब सत्ता में थे तो खुद आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाइयों का दावा करते थे, लेकिन विपक्ष में रहते हुए वही कार्रवाइयाँ उन्हें 'झूठी' या 'प्रोपेगंडा' लगती हैं। 2008 के मुंबई हमलों के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने भी कई कड़े कदम उठाए थे, लेकिन तब भाजपा ने सेना के पराक्रम पर सवाल नहीं उठाए।

चुनावी राजनीति में देशहित?

चुनावी राजनीति में सत्तारूढ़ दल की आलोचना स्वाभाविक है, लेकिन सुरक्षा के सवाल पर पूरा देश एक स्वर में बोलता है। बालाकोट स्ट्राइक हो या गलवान संघर्ष, ऐसे अवसरों पर देश को विपक्ष से समर्थन की अपेक्षा होती है। लेकिन राहुल गांधी की बयानबाजी से देश की एकता को नुकसान पहुँचता है।

चुनाव आयोग से भी नहीं की शिकायत

राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के संदर्भ में 'मैच फिक्सिंग' का आरोप लगाया था, लेकिन खबरों के मुताबिक उन्होंने इस आरोप को लेकर अभी तक चुनाव आयोग में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है। यह दर्शाता है कि कई बार उनके आरोप सिर्फ राजनीतिक हवा बनाने के लिए होते हैं, जिनका वास्तविक तथ्यों से कोई संबंध नहीं होता।

प्रधानमंत्री की स्पष्ट नीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने सुरक्षा के मोर्चे पर स्पष्ट और आक्रामक नीति अपनाई है। चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक, आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश दिया गया है। सरकार का यह रुख न केवल दुश्मनों के लिए चेतावनी है बल्कि देशवासियों में भी सुरक्षा का भरोसा बढ़ाता है।

विपक्ष भी दिखाए जिम्मेदारी

आज भारत वैश्विक शक्ति बनने की राह पर है। अमेरिका, रूस, इज़राइल जैसे देश भारत की सैन्य क्षमता का सम्मान करते हैं। ऐसे में भारत के अंदर से ही सेना के खिलाफ आवाजें उठना दुर्भाग्यपूर्ण है। विपक्ष का दायित्व है कि वह राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीति करने के बजाय सेना के पराक्रम का समर्थन करे। राहुल गांधी और कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि राजनीति का भी एक मर्यादा क्षेत्र होता है। देश की रक्षा और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे वोट बैंक की राजनीति के लिए नहीं होते। सेना का मनोबल गिराकर कोई भी पार्टी देश का भला नहीं कर सकती। विपक्ष को चाहिए कि वह सकारात्मक आलोचना करे, सरकार से सवाल पूछे लेकिन सेना के शौर्य और सम्मान पर आंच न आने दे। देश तभी मजबूत होगा जब उसके नेता हर मोर्चे पर एकजुट होंगे, विशेषकर जब बात सीमाओं की रक्षा करने वाले जवानों की हो।

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