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देशभर में आज मनाई जा रही Eid al-Adha राजस्थान की अजमेर दरगाह में अदा की गई सुबह की नमाज

आज पूरे भारत सहित विश्व के कई मुस्लिम बहुल देशों में बकरीद का त्योहार बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। बकरीद जिसे ईद-उल-अजहा, ईद उल जुहा या ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण और....
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आज पूरे भारत सहित विश्व के कई मुस्लिम बहुल देशों में बकरीद का त्योहार बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। बकरीद जिसे ईद-उल-अजहा, ईद उल जुहा या ईद उल बकरा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह त्योहार त्याग, भक्ति और इंसानियत का प्रतीक माना जाता है और इसे ‘Festival of Sacrifice’ यानी ‘कुर्बानी का त्योहार’ के नाम से भी जाना जाता है।

ईद-उल-अजहा का इस्लामिक कैलेंडर में महत्व

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद का त्योहार हर साल चाँद की स्थिति के आधार पर तय होता है। यह जुलहिज्जा के महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है, जो रमजान के खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद आता है। इस दिन मुसलमान विशेष नमाज अदा करते हैं और कुर्बानी देकर हजरत इब्राहीम की याद में अपने विश्वास का इजहार करते हैं।

ईद-उल-अजहा की पवित्र कथा और इसका संदेश

ईद-उल-अजहा की पवित्र कथा हजरत इब्राहीम से जुड़ी है, जो अल्लाह के आदेश पर अपने प्रिय बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। लेकिन अल्लाह ने उनकी इस भक्ति को देखकर एक जानवर के रूप में उनकी कुर्बानी स्वीकार कर ली। तब से यह दिन त्याग, समर्पण और ईश्वर के प्रति विश्वास की निशानी बन गया।

कुर्बानी के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि इंसान को अपनी सभी सांसारिक इच्छाओं और वस्तुओं को छोड़कर अपने प्रभु की राह में समर्पित रहना चाहिए। यह त्याग और बलिदान की भावना का पर्व है जो मानवता को एकजुट करता है।

कुर्बानी क्यों और कैसे दी जाती है?

ईद-उल-अजहा के अवसर पर मुस्लिम धर्मावलंबी बकरी, भेड़, गाय या ऊँट जैसे जानवरों की कुर्बानी देते हैं। इस्लाम में कुर्बानी केवल उस जानवर की जायज होती है जो पूरी तरह से स्वस्थ और निःसंदेह हो। यदि जानवर में कोई बीमारी या चोट हो तो उसकी कुर्बानी स्वीकार्य नहीं होती।

कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, ताकि वे भी त्योहार की खुशियाँ मना सकें। दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच बांटा जाता है, और तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है। इस प्रकार कुर्बानी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि समाज में सहानुभूति और आपसी भाईचारे का संदेश भी फैलाती है।

बकरीद की परंपराएं और उत्सव

बकरीद का त्योहार सिर्फ एक धार्मिक दिन नहीं है, बल्कि यह खुशियों, मेलजोल और इंसानियत का उत्सव है। देशभर में इस दिन सुबह से ही मस्जिदों और खुली जगहों पर विशेष ईद की नमाज अदा की जाती है। लोग नए और साफ़ कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे को ‘ईद मुबारक’ कहते हैं और मिठाइयां तथा उपहार बांटते हैं।

इस अवसर पर गरीबों, जरूरतमंदों और बेसहारा लोगों की मदद करना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। लोग दान करते हैं और समाज में प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

भारत में बकरीद का उत्सव

भारत में बकरीद का त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह त्योहार देश के मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ सम्पूर्ण सामाजिक ताने-बाने को जोड़ने वाला एक बड़ा पर्व है। यहाँ बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं।

जहाँ सऊदी अरब में बकरीद एक दिन पहले मनाई जाती है, वहीं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे देशों में यह एक दिन बाद मनाई जाती है। इस भिन्नता के पीछे चाँद की उपस्थिति की भौगोलिक स्थिति का फर्क होता है।

निष्कर्ष

बकरीद एक ऐसा त्योहार है जो धर्म और सामाजिक मूल्यों को एक साथ जोड़ता है। यह हमें त्याग, समर्पण और सहानुभूति का पाठ पढ़ाता है। इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी और उससे जुड़ी परंपराएं इंसानियत की महानता को दर्शाती हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में मेलजोल और भाईचारे को भी मजबूती प्रदान करता है। इस बकरीद पर सभी को ‘ईद मुबारक’ और यही कामना कि यह त्योहार हमारे जीवन में प्रेम, शांति और एकता लेकर आए।

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