
मनोरंजन न्यूज़ डेस्क, जोगीरा सारा रा रा रिव्यू जोगीरा सारा रा रा की कहानी एक छोटे शहर की पृष्ठभूमि पर आधारित है जहां नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के किरदार को शादी तोड़ने का काम सौंपा गया है। नेहा शर्मा फीमेल लीड रोल में हैं। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी और नेहा शर्मा अभिनीत जोगीरा सारा रा रा ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है। इस रोमांटिक कॉमेडी का निर्देशन कुशन नंदी ने किया है। गंभीर फिल्म अफवाह के बाद नवाज हल्के-फुल्के अंदाज में नजर आ रहे हैं। छोटे शहरों में हिंदी सिनेमा की दिलचस्पी काफी बढ़ी है। फिल्मों में वहां का लाइफस्टाइल, बोलचाल, बेफिक्र अंदाज देखना भी दिलचस्प होता है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी और नेहा शर्मा की कुशन नंदी निर्देशित जोगीरा सारा रा रा इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ा रही है। फिल्म की कहानी बरेली से शुरू होती है, जहां डिंपल चौबे (नेहा शर्मा) शराब के नशे में शादी में हंगामा करती है। विवाह भोज में आ रही कमियों को दूर करता है। दरअसल, वह घर से इसलिए भागी थी क्योंकि उसके परिवार वाले उसकी शादी करवाना चाहते थे। वह एक वेडिंग प्लानर जोगी प्रताप (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से मिलती है। वह उसे घर जाने के लिए पैसे देता है। कुछ समय बाद दोनों फिर मिलते हैं।
जोगी को जो शादी कराने का फरमान मिला है, वह डिंपल की है। डिंपल जोगी से किसी भी कीमत पर अपनी शादी तोड़ने को कहती हैं। डिंपल का होने वाला पति लल्लू (महाक्षय चक्रवर्ती) सरकारी नौकरी करता है, सादा है और बिना दहेज के डिंपल से शादी कर रहा है। एक जोगी के लिए एक हरफनमौला लड़के में कमियां निकालकर शादी तोड़ देना आसान नहीं होता। जोगी ने डिंपल के अपहरण की योजना बनाई। इसमें उसकी मदद उसका साथी मनु (रोहित चौधरी) करता है, क्योंकि वह कभी चौधरी गिरोह में काम करता था, जो इस तरह के अपहरण करता था।
डिंपल के अपहरण की खबर चौधरी गिरोह तक पहुंचती है, जिसका अपहरण से कोई लेना-देना नहीं है। उसका खुद का अपहरण अभियान ठीक नहीं चल रहा है। क्या टूट जाएगी डिंपल की शादी? क्या जोगी का जुगाड़ चलेगा या वह खुद इसमें फंसेंगे? इसी पर कहानी आगे बढ़ती है। बाबूमोशाय बंदूकबाज को निर्देशित करने वाले कुशान नंदी ने इस बार शुद्ध कॉमेडी में हाथ आजमाया है। कहानी चुनने की उनकी कोशिश अच्छी है, लेकिन कमजोर डायरेक्शन और घटिया एडिटिंग कई जगहों पर सीन को बोरिंग बना देती है। लेखक ग़ालिब असद भोपाली द्वारा लिखी गई फ़िल्म की कहानी बेशक साधारण है, लेकिन परिस्थितियों के अनुसार उनके लिखे संवाद और वन-लाइनर्स हास्यप्रद हैं। कैरम बोर्ड के टुकड़ों की मदद से अपहरण की प्रक्रिया को समझाने वाला सीन मजेदार है। लेखन और संजय मिश्रा का प्रदर्शन इसे एक अलग स्तर पर ले जाता है।
मेडिकल से सैनिटरी पैड और प्रेग्नेंसी टेस्ट किट खरीदने में वीरेंद्र घरसे की झिझक, एक लड़के को अपने प्रोफेशन के हिसाब से कितना दहेज लेना चाहिए, इसे सीन को टाइट करने के लिए एडिट किया जा सकता था, क्योंकि ये मुद्दे किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ते. जोगी और डिंपल के परिवार की कास्टिंग बेहतरीन है। मां, चार बहनों, एक बुआ के बीच अकेला जोगी महिलाओं और शादी से दूर क्यों भागता है इसका कारण बिना किसी संवाद के समझा जा सकता है। जब फिल्म के पात्र वास्तविकता के करीब लगते हैं और उनसे जुड़ जाते हैं, तो जोगी का एक आम आदमी से नायक में अचानक परिवर्तन कहानी से संबंध तोड़ देता है। इंटरवल के बाद फिल्म धीमी हो जाती है। कुछ एपिसोड बहुत खींचे गए हैं। वहीं, क्लाइमेक्स को जल्दबाजी में निपटा दिया गया है। गीतकार लवराज और सुवर्णा तिवारी द्वारा लिखित आनंदी जोशी का गाना 'अंगना में आया है जहाज बबुआ...' कानों को भाने वाला है। सिनेमैटोग्राफर सौरभ वाघमारे ने इस गाने में वाराणसी के कुछ बेहतरीन दृश्यों को कैद किया है। गंभीर भूमिकाएं निभाते आए नवाजुद्दीन सिद्दीकी कॉमेडी में भी माहिर हैं, यह साबित करता है। नेहा शर्मा अपने किरदार पर टिके रहने की कोशिश करती हैं, हालांकि कहीं-कहीं उनका शहरी अंदाज भी नजर आता है। जोगी के दोस्त की भूमिका में रोहित चौधरी ध्यान खींच लेते हैं। गिरोह के सरगना के छोटे से रोल में संजय मिश्रा चौधरी फ्लॉप हो गए। पर्दे पर फारुख जफर को दादी की भूमिका में देखना सुखद है।