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Insidious The Red Door Review : खुल गया लाल दरवाज़े का राज़ और जानी पहचानी प्रेतकथा, पैट्रिक के डायरेक्शन का इम्तिहान

Insidious The Red Door Review : खुल गया लाल दरवाज़े का राज़ और जानी पहचानी प्रेतकथा, पैट्रिक के डायरेक्शन का इम्तिहान

मनोरंजन न्यूज़ डेस्क - एक लीक से हटकर कहानी को दर्शकों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया न केवल फिल्म निर्माताओं को उत्साहित करती है बल्कि उन्हें कहानी को आगे ले जाने और उस पर सीक्वल फिल्में बनाने के लिए प्रेरित भी करती है। साल 2010 में रिलीज हुई फिल्म 'इनसिडियस' के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब लोग हॉरर फिल्मों में इंसानी शरीर की वीभत्सता, अनावश्यक शारीरिक प्रदर्शन और उबाऊ शारीरिक संबंधों को देखकर थक गए थे, तब इस फिल्म ने हॉरर फिल्मों के लिए एक नई दिशा स्थापित की। इस फिल्म की कहानी के माहौल ने लोगों को इतना डराया कि इसके निर्माताओं ने इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए चार फिल्में बनाईं। इस फ्रेंचाइजी की पिछली फिल्म 'इनसिडियस: द लास्ट की' पांच साल पहले रिलीज हुई थी। फिल्म 'इनसिडियस: द रेड डोर' इनमें से पहली दो फिल्मों के बाद की कहानी है, यानी कहानी के फ्लो के हिसाब से इसे इस फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म माना जा सकता है।

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बेचैन भूत की कहानी
'इसिडियस' फ्रेंचाइजी को हॉलीवुड हॉरर फिल्मों की अब तक की सबसे सफल फ्रेंचाइजी में गिना जाता है। इसकी पहली फिल्म ने भारत में भी खूब धमाल मचाया था और यही वजह है कि जब भी इस सीरीज में कोई नया एपिसोड जुड़ता है तो भारतीय दर्शकों को भी इसका इंतजार रहता है। फिल्म 'इनसिडियस: द रेड डोर' अमेरिका से एक दिन पहले भारत में रिलीज हुई और इससे फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर शुरुआती बढ़त भी मिल सकती है। अपने निर्देशन की शुरुआत कर रहे निर्देशक पैट्रिक विल्सन की यह फिल्म फ्रेंचाइजी को अपेक्षित अंत तक लाने का प्रयास करती है। कहानी उसी लैंबर्ट परिवार की है जिसे शरीर छोड़कर सिर्फ आत्मा के सहारे दूसरी दुनिया में जाने की कला विरासत में मिली है. अगर आपको इस फ्रेंचाइजी की पहली फिल्म याद हो तो डाल्टन भी यही कोशिश करता है और एक ऐसी दुनिया में फंस जाता है जहां के निवासी जीवित शरीरों की आत्माओं की मदद से धरती पर लौटने के लिए बेताब हैं। कहानी उससे भी एक दशक आगे की है। जोश अपने बड़े बेटे, डाल्टन को उसके कॉलेज में छोड़ता है। वह उनकी याददाश्त वापस लाने की कोशिशों में भी लगे हुए हैं। लेकिन अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ता।

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अतीत का डर विरासत में मिला है
इस बीच, एक लड़की छात्रावास में डाल्टन की रूममेट के रूप में आती है। दोनों समझ जाते हैं कि ये नाम को लेकर कन्फ्यूजन है। इसी बीच दोनों के बीच दोस्ती हो गई। डाल्टन के शिक्षक ने डाल्टन को कक्षा में कैनवास पर जो कुछ लिखने के लिए कहा, उससे एक दरवाजा खुलता है जिसके माध्यम से अन्य दुनिया की ताकतें डाल्टन के जीवन में फिर से प्रवेश करना शुरू कर देती हैं। इस बीच जोश अपने माता-पिता के अतीत को खंगालता है। उसे अपने पिता की मृत्यु के बारे में सच्चाई पता चलती है। जब वह अपनी बिछड़ी पत्नी से मिलने जाता है तो यह सच्चाई भी सामने आती है कि उसे यह सब पहले से ही पता था। अब मायावी ताकतों के खिलाफ पिता-पुत्र की सामूहिक लड़ाई है। पिछली फिल्मों के संदर्भ से कहानी उस मुकाम पर पहुंचती है जहां आर या पार हो जाती है।

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ढीली पटकथा ने निराश किया
फिल्म 'इनसिडियस: द रेड डोर' में इसके लेखकों और निर्देशकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती दर्शकों को कुछ ऐसा परोसना था जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। इस कहानी श्रृंखला को लगातार देख रहे दर्शकों को डराने के लिए टीम को कुछ अकल्पनीय करना चाहिए था, लेकिन इस पूरी फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह दर्शकों को एक बार भी सिनेमा हॉल के अंधेरे में नहीं बैठने देती है। पॉपकॉर्न खाने वाली लड़कियां भी डर के मारे एक बार भी नहीं चिल्लातीं। सभी सहमत हो जाते हैं और खुश हो जाते हैं और लोगों के चेहरे देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे कोई डरावनी फिल्म देखकर निकले हैं। इसमें सबसे बड़ी कमी फिल्म की पटकथा लिखने वाली टीम की थी। फिल्म का असली तनाव बिंदु तब खत्म हो जाता है जब ये दोनों किरदार फिल्म में अलग-अलग माहौल में रहने लगते हैं जो पिता और पुत्र के बीच आपसी तनाव से शुरू होता है।

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पैट्रिक विल्सन उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे
बड़े डाल्टन के रूप में टाइ सिमकिंस पूरी तरह से फिल्म के मालिक हैं लेकिन उनका अभिनय कौशल ऐसे पात्रों के लिए पर्याप्त नहीं है। वह एक मासूम छात्र के रूप में प्रभावित करते हैं, लेकिन अपने पिता से नाराज बेटे और अपनी ही पेंटिंग के रहस्यों से अनभिज्ञ एक कलाकार के रूप में, उनकी अभिनय क्षमता उतनी नहीं है। जोश लैंबर्ट के रूप में पैट्रिक भी दर्शकों को प्रभावित करने में कुछ खास नहीं कर सके। हां, हॉस्टल में डाल्टन की दोस्त बनी डेनिएल सिंक्लेयर दर्शकों का ध्यान जरूर खींचती हैं. उनके डायलॉग्स भी बेहद मजाकिया अंदाज में लिखे गए हैं जिन्हें वह उतनी ही सहजता से बोलते भी हैं। जोसेफ बिशारा, जो इस सीरीज के संगीतकार थे, उन्होंने भी फिल्म 'इनसिडियस: द रेड डोर' में वापसी की है, लेकिन उनका संगीत भी निराश करता है। इस हफ्ते ओटीटी पर एक देसी हॉरर स्टोरी 'अधूरा' भी रिलीज हो रही है। दोनों की टक्कर में फिल्म 'इनसिडियस: द रेड डोर' कमजोर पड़ती नजर आ रही है।

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