Samachar Nama
×

कमल हासन की दमदार एक्टिंग भी नहीं बचा सकी फिल्म, बेहद सुस्त है मणिरत्नम का गैंगस्टर ड्रामा

भारतीय सिनेमा के दिग्गज मणिरत्नम जब कोई नई फिल्म लेकर आते हैं, तो दर्शकों की उम्मीदें खुद-ब-खुद आसमान छूने लगती हैं। उनके नाम से ही एक खास किस्म का सिनेमाई विश्वास जुड़ा होता है—कि चाहे कहानी किसी भी शैली की हो, मणिरत्नम कुछ ऐसा...
dfdasf

भारतीय सिनेमा के दिग्गज मणिरत्नम जब कोई नई फिल्म लेकर आते हैं, तो दर्शकों की उम्मीदें खुद-ब-खुद आसमान छूने लगती हैं। उनके नाम से ही एक खास किस्म का सिनेमाई विश्वास जुड़ा होता है—कि चाहे कहानी किसी भी शैली की हो, मणिरत्नम कुछ ऐसा जरूर दिखाएंगे जो लंबे समय तक याद रह जाए। लेकिन कमल हासन स्टारर 'ठग लाइफ' इस कसौटी पर बुरी तरह फेल होती है। यह फिल्म एक ऐसा उदाहरण बन गई है जहां प्रतिभाशाली कलाकारों और तकनीकी मजबूती के बावजूद फिल्म अपनी स्क्रिप्ट और ट्रीटमेंट के कारण गिर जाती है।

दमदार कास्ट, लेकिन ढीली कहानी

फिल्म का आधार काफी आकर्षक है—एक गैंगस्टर ड्रामा जिसमें कमल हासन जैसे दिग्गज एक जटिल किरदार में हैं, STR (सिलंबरसन) जैसा युवा स्टार, त्रिशा, नासर, अशोक सेल्वन, और नकारात्मक भूमिका में महेश मांजरेकर जैसे मंझे हुए कलाकार मौजूद हैं। लेकिन 'ठग लाइफ' की सबसे बड़ी विडंबना ये है कि यह फिल्म गैंगस्टर ड्रामा की परिभाषा को ही भूल जाती है।

शक्तिवेल (कमल हासन) और उनके भाई (नासर) ने एक गैंग बनाई है, जिसे कहानी के शुरुआती फ्लैशबैक में दिखाया जाता है। एक पुलिस शूटआउट के दौरान एक मासूम अखबार बेचने वाला मारा जाता है, और उसका बेटा अमर (STR) शक्तिवेल की छत्रछाया में पला-बढ़ा। इस सेटअप के बाद कहानी 2016 में आती है, जहां राजनीतिक और व्यक्तिगत बदले की परतें जुड़ने लगती हैं।

मगर समस्या यही से शुरू होती है। कथानक में इतने सारे किरदार और सब-प्लॉट्स जुड़ जाते हैं कि मूल कहानी कहीं पीछे छूट जाती है। गैंगस्टर ड्रामा के बजाय यह एक पारिवारिक-राजनीतिक-इमोशनल ड्रामा बन जाती है, जिसमें गैंगस्टर वाला एक्शन, टशन, इंटेंसिटी गायब है।

स्क्रिप्ट और नैरेटिव की खामियां

फिल्म का सबसे बड़ा दोष इसकी स्क्रिप्ट और नैरेटिव संरचना (narrative structure) है। फिल्म आपको घटनाओं के नतीजे पहले दिखा देती है और उनके कारणों को बाद में बताती है। यह तकनीक अगर सही ढंग से प्रयोग हो तो बेहद प्रभावी होती है, लेकिन 'ठग लाइफ' में ये सिर्फ उलझन और बोरियत पैदा करती है—खासतौर पर सेकंड हाफ में।

शक्तिवेल की हत्या की कोशिश, नेपाल जाकर ट्रेनिंग लेना, फिर वापसी कर के खुद पर हमले के पीछे के लोगों को ढूंढना—ये सब कुछ इतना रटे-रटाए तरीके से दिखाया गया है कि रोमांच की जगह ऊब महसूस होती है।

अमर का किरदार बेहद अधपका और सपाट है। वह न तो शक्तिवेल के बराबरी का प्रतीत होता है, न ही एक स्वतंत्र ताकत जैसा। अमर और उसकी बहन चंदा की कहानी भी अधूरी और प्रभावहीन लगती है।

बेअसर इमोशनल और गैरजरूरी सीक्वेंस

फिल्म में शक्तिवेल की बेटी की शादी, त्रिशा के साथ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर, और गैरजरूरी पारिवारिक सीक्वेंस न केवल फिल्म को खींचते हैं, बल्कि नैरेटिव की धार को भी कुंद कर देते हैं। ये वो हिस्से हैं जिन्हें एडिट किया जाता तो फिल्म ज्यादा क्रिस्प और ध्यान केंद्रित लगती।

टेक्निकल पक्ष और म्यूजिक

फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन और सिनेमैटोग्राफी काफी उच्च स्तर की है। फ्रेम्स शानदार हैं, और दृश्यात्मक तौर पर फिल्म कभी भी कमजोर नहीं लगती। लेकिन जब कहानी ही पकड़ नहीं बना पाती, तो तकनीकी सुंदरता भी नाकाफी रह जाती है।

ए आर रहमान के म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर से उम्मीदें बहुत थीं, लेकिन फिल्म में उनके ट्रैक्स प्रभाव नहीं छोड़ते। जितना चर्चित एल्बम ट्रेलर के समय था, फिल्म में वो असर नहीं दिखता।

एक्टिंग में जान, मगर स्क्रिप्ट में दम नहीं

कमल हासन हमेशा की तरह दमदार परफॉर्मर हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी और स्क्रीन प्रेजेंस से स्पष्ट होता है कि वो अभिनय के शिखर पर क्यों हैं। STR भी अपने किरदार में ईमानदार हैं, मगर उनके पास करने के लिए स्क्रिप्ट में कुछ खास है ही नहीं।

त्रिशा, नासर, अशोक सेल्वन जैसे अनुभवी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है, लेकिन उनकी भूमिकाएं बहुत सीमित या कमजोर लिखी गई हैं।

निष्कर्ष: एक चूक गया मौका

‘ठग लाइफ’ एक ऐसा विचार था जिसमें एक बेहतरीन गैंगस्टर-इमोशनल थ्रिलर बनने की संभावनाएं थीं। परंतु कमजोर लेखन, ठंडी पटकथा, और असंतुलित नैरेटिव के कारण यह फिल्म उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती जो मणिरत्नम और कमल हासन के नाम से जुड़ी होती हैं।

Share this story

Tags