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Dara Singh Death Anniversary: दारा सिंह को अखाड़े में देख बड़े-बड़े पहलवानों के छूट जाते थे पसीने, पढ़िए कहानी 'रुस्तमे हिंद'की 

Dara Singh Death Anniversary: दारा सिंह को अखाड़े में देख बड़े-बड़े पहलवानों के छूट जाते थे पसीने, पढ़िए कहानी 'रुस्तमे हिंद'की

मनोरंजन न्यूज डेस्क - पंजाबी और हिंदी फिल्मों के अभिनेता दारा सिंह को आज भी उनकी कुश्ती और अभिनय के लिए याद किया जाता है। दारा सिंह ने रामायण में हनुमान का किरदार निभाया था। बचपन से ही उन्हें कुश्ती का शौक था। 19 नवंबर को पंजाब के अमृतसर धर्मूचक गांव में बलवंत कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर एक बेटे का जन्म हुआ। बेटे का नाम दीदार सिंह रंधावा यानी दारा सिंह रखा गया। मां ने उसका दाखिला स्कूल में करवा दिया लेकिन दादा को दारा सिंह का स्कूल जाना पसंद नहीं था। इस वजह से उन्होंने उसका नाम स्कूल से कटवा दिया।

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मां ने पढ़ाई में की मदद
एक बार दारा सिंह के घर एक पंडित आए जो उनकी मां के गांव के थे। उन्होंने दारा सिंह की मां बलवंत कौर से दारा सिंह को अपने साथ भेजने के लिए कहा। पंडित ने अपनी बातों से मां को आश्वस्त किया कि वह बच्चों को पढ़ाते हैं और उचित शिक्षा भी देते हैं। मां इस बात पर राजी हो गईं और किसी तरह दादा को भी राजी कर लिया। दारा सिंह ने जो भी पढ़ाई की, इसी पंडित के यहां की। एक समय ऐसा था जब दारा सिंह अपने गांव के उन चंद लोगों में से एक थे जो अक्षर पढ़ना जानते थे।

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9 साल की उम्र में हुई शादी
दारा सिंह की शादी 9 साल की उम्र में हो गई थी। हालांकि, उनकी पत्नी उनसे उम्र में बड़ी थीं। उम्र में बड़ी होने की वजह से दारा सिंह की पत्नी उनसे ज्यादा ताकतवर दिखती थीं। जबकि उनकी मां को लगता था कि उनका बेटा उनकी बहू से कमजोर है। इस वजह से उन्होंने उन पर काफी मेहनत करनी शुरू कर दी। खेतों में काम करने और मां के प्यार की वजह से दारा सिंह का खान-पान काफी अच्छा हो गया। 17 साल की उम्र में वे एक बच्चे के पिता भी बन गए। जैसे-जैसे परिवार बढ़ा, जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं। दारा सिंह अपने चाचा से जिद करके कुछ समय के लिए सिंगापुर चले गए। वहां कुछ दोस्तों ने उनकी लंबाई-चौड़ाई देखकर उन्हें कुश्ती करने की सलाह दी।

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कैसे बने दारा सिंह कुश्ती चैंपियन?
दारा सिंह ने वहीं से कुश्ती शुरू की और उनके रहने का खर्च भी इन्हीं कुश्ती मुकाबलों से निकलने लगा। तीन साल में उन्होंने फ्रीस्टाइल कैटेगरी में महारत हासिल कर ली थी। यहीं पर उनका पहला प्रोफेशनल कुश्ती मुकाबला एक इटैलियन पहलवान से हुआ था। यह मुकाबला बराबरी पर छूटा था। इसके लिए उन्हें 50 डॉलर मिले थे। यहां रहते हुए दारा सिंह ने मशहूर पहलवान तरलोक सिंह को हराया था। यहीं से उन्हें शोहरत मिली थी। इस कुश्ती मुकाबले में यह घोषणा की गई थी कि जो भी मुकाबला जीतेगा वह पूरे मलेशिया का चैंपियन होगा। यहीं से दारा सिंह मलेशिया के नए कुश्ती चैंपियन बन गए थे। दारा सिंह की कुश्ती के दांव-पेंच देखकर बड़े-बड़े पहलवानों के पसीने छूट जाते थे। उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में 200 किलो के किंग कांग को हराकर इतिहास रच दिया था।

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दारा सिंह का खान-पान क्या था?
इसका जिक्र दारा सिंह की आत्मकथा में भी किया गया है। दारा सिंह ने बताया कि वह 100 ग्राम शुद्ध घी, दो किलो दूध, 100 ग्राम बादाम ठंडाई, दो मुर्गे या आधा किलो बकरे का मांस, 100 ग्राम आंवले, सेब या गाजर का जैम, 200 ग्राम मौसमी फल, दिन में दो बार चार रोटी, दिन में एक बार सब्जी और दिन में एक बार मांस खाते थे।

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