150 साल का वो दौर जब दोस्ती की आड़ में हुआ राज, और फिर विश्वासघात की शुरुआत – मुग़ल सल्तनत की सच्ची तस्वीर
भारत का इतिहास अनेक राजवंशों, साम्राज्यों और शासकों की कहानियों से भरा पड़ा है. इनमें मुगल साम्राज्य (साल 1526 से 1857) का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है. मुगलों ने न केवल भारत की राजनीति, संस्कृति और समाज को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए कई बार दोस्ती और धोखे की नीति भी अपनाई.फ्रैंडशिप डे के बहाने आइए इस मुद्दे को थोड़ा विस्तार देते हैं. समझते हैं कि मुगल शासकों ने किस तरह भारतीय राजाओं-महाराजाओं से पहले दोस्ती की, फिर समय आने पर उन्हें धोखा दिया, और इसका भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा.
अकबर की संधि और विवाह नीति
अकबर (साल 1556 से 1605) को मुगल साम्राज्य का सबसे चतुर और दूरदर्शी शासक माना जाता है. उसने राजपूतों के साथ दोस्ती की नीति अपनाई. कई राजपूत राजाओं से वैवाहिक संबंध बनाए. आमेर के राजा भारमल की बेटी जोधा बाई से विवाह किया. अकबर ने राजपूतों को उच्च पद दिए, उनकी सेना में शामिल किया और उन्हें सम्मानित किया. लेकिन यह दोस्ती हमेशा स्थायी नहीं रही.
धोखे की मिसालें
अकबर ने मेवाड़ के महाराणा प्रताप को कई बार संधि के लिए बुलाया, लेकिन जब महाराणा प्रताप ने झुकने से इनकार किया, तो हल्दीघाटी का युद्ध हुआ. अकबर ने मेवाड़ के अन्य राजाओं को तोड़कर अपने पक्ष में कर लिया, लेकिन प्रताप को कभी नहीं जीत सका. इसी तरह, अकबर ने गुजरात, बंगाल, कश्मीर आदि के शासकों से पहले दोस्ती की, फिर जब वे कमजोर पड़े, तो उन पर हमला कर दिया.
जहांगीर और शाहजहां की चालाकी
जहांगीर (साल 1605 से 1627 तक) और शाहजहां (साल 1628 से 1658 तक) ने भी अपने पूर्वजों की नीति को आगे बढ़ाया. जहांगीर ने मेवाड़ के अमर सिंह से संधि की, लेकिन शर्तें ऐसी रखीं कि मेवाड़ की स्वतंत्रता लगभग खत्म हो गई. शाहजहां ने दक्षिण भारत के बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर के सुल्तानों से पहले दोस्ती की, फिर समय आने पर उन पर हमला कर दिया.
औरंगजेब ने दोस्ती का मुखौटा लगाकर दिया धोखा
औरंगजेब (साल 1658 से 1707 तक) के समय मुगल साम्राज्य सबसे बड़ा था, लेकिन उसकी नीति सबसे कठोर और धोखेबाज मानी जाती है. उसने अपने पिता शाहजहां को कैद किया, भाइयों को मरवा दिया. दक्षिण भारत के मराठा शासक शिवाजी से पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाया, फिर आगरा किले में कैद कर लिया. शिवाजी किसी तरह भाग निकले, लेकिन यह घटना मुगलों की दोस्ती और धोखे की नीति का बड़ा उदाहरण है.
दक्षिण भारत के सुल्तानों के साथ धोखा
औरंगजेब ने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों से पहले संधि की, फिर जब वे कमजोर पड़े, तो उन पर हमला कर दिया और उनके राज्य छीन लिए. इसी तरह, उसने राजपूतों के साथ भी पहले दोस्ती की, फिर जब वे उसकी धार्मिक नीति से असंतुष्ट हुए, तो उन पर हमला कर दिया.
क्यों अपनाई मुगलों ने यह नीति?
मुगल शासकों को पता था कि भारत एक विशाल और विविधता भरा देश है. यहां के राजाओं-महाराजाओं को एक साथ हराना मुश्किल था. इसलिए उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई. पहले दोस्ती, फिर धोखा, इससे वे एक-एक कर राज्यों को अपने अधीन करते गए. यह नीति उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मददगार रही, लेकिन इससे भारतीय समाज में अविश्वास और अस्थिरता भी बढ़ी.
कुछ ने कर ली मुगलों से संधि, कुछ सीना ताने खड़े रहे
कुछ राजाओं ने मुगलों की दोस्ती स्वीकार कर ली, तो कुछ ने डटकर मुकाबला किया. महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह जैसे शूरवीरों ने कभी मुगलों के आगे सिर नहीं झुकाया. वहीं, कुछ राजाओं ने अपने स्वार्थ के लिए मुगलों से संधि कर ली, जिससे भारतीय एकता कमजोर हुई.
दोस्ती और धोखे की नीति का ऐतिहासिक प्रभाव
मुगलों की इस नीति का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय एकता को हुआ. राजाओं के बीच आपसी अविश्वास बढ़ा, जिससे विदेशी आक्रमणकारियों को बार-बार भारत पर हमला करने का मौका मिला. मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी यही नीति अपनाई और भारत को गुलाम बना लिया.मुगल शासकों की दोस्ती और धोखे की नीति ने भारतीय इतिहास की दिशा और दशा दोनों को बदल दिया.

