उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क मनरेगा मजदूरों की शिकायतें सुनने को नियुक्त लोकपाल कई जिलों में खाली बैठे हैं. तमाम जिलों में उन्हें पिछले एक साल में पांच से भी कम शिकायतें मिली हैं. इनमें पूरब से पश्चिम तक के जिले शामिल हैं. वजह यह कि लोगों को मनरेगा लोकपाल के बारे में पता ही नहीं है. आईजीआरएस, डीएम और सीडीओ तक सैकड़ों शिकायतें पहुंच रही हैं लेकिन खास मजदूरों के समाधान के लिए नियुक्त लोकपाल खाली बैठे हैं. प्रतापगढ़ में तो शिकायतों की संख्या शून्य है.
पूरब-पश्चिम का एक सा हालपूरब से पश्चिम तक करीब-करीब एक सा हाल है. मसलन बरेली में लोकपाल तक महज सात शिकायतें आईं तो बदायूं में शून्य. मेरठ-सहारनपुर में हर महीने पांच-छह शिकायतें पहुंच रही हैं तो मुरादाबाद के लोकपाल महेश चंद बताते हैं कि मार्च से अब तक एक भी शिकायत नहीं आई है. अमरोहा में शून्य शिकायत है. गोरखपुर में 48 शिकायतें पहुंचीं जिनमें 35 का निस्तारण हो गया. बस्ती, उन्नाव, हरदोई, बहराइच समेत प्रदेश के छह जनपदों में मनरेगा लोकपाल पिछले आठ माह से कार्यरत नहीं हैं. सोनभद्र में जरूर 70 शिकायतों की जांच कर 100 मनरेगा मजदूरों की मजदूरी दिलवाई गई तो प्रतापगढ़ में शिकायत शून्य हैं.
अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा मनेरगा में घालमेल
गांवों में कराए जा रहे मनरेगा के कार्यों में अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी धन में घालमेल किया जा रहा है. ऑनलाइन हाजिरी 100 मजदूरों की लगाई है लेकिन मौके पर एक भी मजदूर काम करते नहीं मिले.
बाबागंज के माघी चैनगढ़ गांव में मनरेगा से माघी सड़क से अन्नावां गांव की सीमा तक जाने वाले सम्पर्क मार्ग का निर्माण होना है. सम्पर्क मार्ग के निर्माण के लिए सौ मजदूरों की ऑनलाइन हाजिरी लगाई गई. हिन्दुस्तान की टीम मौके पर पहुंची तो वहां एक भी मजदूर काम करते नहीं दिखे. जिससे गांव में चल रहे खेल को लेकर लोगो में चर्चा रही. मामले को लेकर बीडीओ राजेन्द्र नाथ पाण्डेय का कहना है कि सभी मजूदरों की हाजिरी शून्य कर कार्रवाई की जाएगी.
कानपुर में चार साल में एक शिकायत
कानपुर में पिछले साढ़े तीन साल में मनरेगा लोकपाल तक महज एक शिकायत पहुंची. यहां मार्च को दिनेश कुमार लोकपाल बने. तब से वह रोज दफ्तर आते और बिना काम लौट जाते हैं. पांच माह से यह क्रम जारी है. दिनेश कुमार से पहले तीन साल तक राम निवास पांडे लोकपाल रहे. उन्हें पूरे कार्यकाल में महज एक शिकायत मिली, वह भी खारिज करनी पड़ी. शिकायत बिल्हौर के ग्राम प्रधानों की थी, जिन्होंने मनरेगा से पौधरोपण कराया. नर्सरी संचालक को भुगतान नहीं मिला तो वह लोकपाल तक पहुंचा. प्रधानों को वन विभाग से निशुल्क पौधे मिलने थे, इसलिए निजी पौधशाला को भुगतान न होने की शिकायत ही खारिज कर दी गई.
वाराणसी न्यूज़ डेस्क