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अब वो नहीं आएगी, हम खुशी से रहेंगे… उदयपुर में प्रेम में पड़े विवाहित पुरुष को पत्नी की हत्या के लिए फांसी की सजा

अब वो नहीं आएगी, हम खुशी से रहेंगे… उदयपुर में प्रेम में पड़े विवाहित पुरुष को पत्नी की हत्या के लिए फांसी की सजा

प्रेम में पड़े एक विवाहित पुरुष द्वारा अपनी पत्नी की बेरहमी से हत्या करने के मामले में उदयपुर जिले की मावली अपर जिला एवं सत्र न्यायालय ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने आरोपी प्रेमलाल को ‘विरलतम श्रेणी’ (Rarest of Rare) का अपराध करने वाला माना और उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई।

जानकारी के अनुसार, आरोपी प्रेमलाल ने अपनी पत्नी नीमा की हत्या प्रेमिका के साथ नई जिंदगी शुरू करने की चाहत में की थी। अदालत ने इस कृत्य को अत्यंत क्रूर और योजना बद्ध बताया। अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध समाज के मूल्यों और नैतिकता के लिए गंभीर खतरा हैं और इन्हें अक्षम्य माना जाना चाहिए।

मावली कोर्ट के न्यायाधीश ने बयान दिया कि “यह मामला ‘विरलतम श्रेणी’ के अपराध का उदाहरण है। आरोपी ने अपनी निजी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीवन की सबसे कीमती चीज, पत्नी का जीवन ही समाप्त कर दिया। न्याय और कानून के दृष्टिकोण से इस अपराध के लिए कड़ी सजा अनिवार्य है।”

पुलिस के अनुसार, हत्या की घटना की पूरी योजना आरोपी ने पहले से बना रखी थी। हत्या के बाद आरोपी ने घटना को छुपाने का प्रयास किया, लेकिन साक्ष्यों और जांच के दौरान उसकी साजिश सामने आ गई। अदालत में सबूतों और गवाहों के आधार पर यह स्पष्ट हुआ कि हत्या पूरी तरह से पूर्व नियोजित और क्रूर तरीके से की गई थी।

नीमा के परिजनों ने न्यायालय के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह सजा उन्हें थोड़ी राहत देती है और उनके दुख को कम करने में मददगार साबित होगी। वहीं, समाज में भी इस फैसले को कानून और न्याय की जीत के रूप में देखा जा रहा है।

इस घटना ने समाज में गृहस्थ जीवन, विश्वास और नैतिक जिम्मेदारियों के महत्व पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि ऐसी घटनाओं से परिवार और समाज पर गहरा असर पड़ता है और इसके लिए कानून की कड़ी कार्रवाई आवश्यक है।

उदयपुर की मावली कोर्ट का यह फैसला न केवल आरोपी के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक चेतावनी है कि कोई भी व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए अन्य का जीवन समाप्त करने का साहस न करे। न्यायपालिका का संदेश स्पष्ट है: अपराध चाहे कितना भी व्यक्तिगत या भावनात्मक क्यों न हो, कानून के दायरे में इसका न्याय अवश्य होगा।

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