टोंक के वनस्थली विद्यापीठ में छात्रा ने हॉस्टल की बालकनी से लगाई छलांग, पिता ने छात्राओं पर टॉर्चर और ब्लैकमेल का लगाया आरोप
वनस्थली विद्यापीठ में एमबीए की पढ़ाई कर रही एक छात्रा द्वारा हॉस्टल की बालकनी से कूदने की घटना ने संस्थान की व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। छात्रा के पिता ने निवाई थाने में इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि उनकी बेटी को हॉस्टल में अन्य छात्राओं द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित और ब्लैकमेल किया जा रहा था, जिसकी वजह से उसने यह खौफनाक कदम उठाया।
छात्रा के पिता ने पुलिस को दी गई तहरीर में बताया कि उनकी बेटी को 17 जुलाई को एमबीए कोर्स के लिए वनस्थली विद्यापीठ के शांता वत्स्यम छात्रावास के कमरे नंबर 82 में भर्ती कराया गया था। वहां उसके साथ अन्य छात्राएं भी रहती थीं। रिपोर्ट के अनुसार, उन छात्राओं ने उनकी बेटी के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। उसे टॉर्चर किया गया, मानसिक दबाव डाला गया और उसे ब्लैकमेल किया गया।
पिता ने बताया कि 22 जुलाई की रात को उनकी बेटी ने डर और घबराहट भरे स्वर में उन्हें फोन कर इस पूरे मामले की जानकारी दी थी। उसने बताया कि वह बहुत तनाव में है और स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं देख रही है। उसी रात छात्रा ने हॉस्टल की बालकनी से छलांग लगा दी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई। फिलहाल छात्रा का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है।
पुलिस ने पीड़ित पिता की शिकायत पर मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। निवाई थानाधिकारी ने बताया कि छात्रा के बयान और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही हॉस्टल में रहने वाली अन्य छात्राओं से भी पूछताछ की जा रही है।
इस घटना ने एक बार फिर शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक उत्पीड़न और रैगिंग जैसे मामलों की गंभीरता को उजागर किया है। वनस्थली विद्यापीठ प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, आंतरिक जांच समिति गठित कर दी गई है जो मामले की समीक्षा कर रही है।
वहीं छात्रा के परिवार का कहना है कि यदि संस्थान ने पहले ही इस प्रकार की हरकतों पर सख्ती से कार्रवाई की होती, तो उनकी बेटी आज इस हालत में नहीं होती। परिवार ने उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
घटना के बाद छात्रा के सहपाठियों और स्थानीय सामाजिक संगठनों में भी रोष देखा जा रहा है। सभी की एक ही मांग है—छात्राओं की सुरक्षा को लेकर शैक्षणिक संस्थानों को और अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनाया जाए।
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