
गयाजी भारत के सबसे प्राचीन, पवित्र और धार्मिक स्थलों में से एक है, जो न केवल हिंदू आस्था का केंद्र है, बल्कि पितृमोक्ष की कामना से जुड़े अनगिनत श्रद्धालुओं की भावनाओं से भी गहराई से जुड़ा है। मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसी वजह से यहां हर दिन देश-विदेश से हजारों की संख्या में पिंडदानी आते हैं।
पिंडदान की परंपरा और महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, गया में पिंडदान करना श्राद्ध कर्म का सर्वोच्च रूप माना गया है। यह परंपरा त्रेता युग से जुड़ी मानी जाती है, जब भगवान राम ने अपने पिता दशरथ के लिए यहां पिंडदान किया था। यह भी मान्यता है कि स्वयं विष्णु भगवान ने भी गयाजी में पिंडदान कर इस भूमि को मोक्षदायिनी बना दिया।
हर दिन लगता है श्रद्धा का मेला
गयाजी की गलियों, घाटों और मंदिरों में हर दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। लोग अपने पुरखों की आत्मा की शांति के लिए विधिवत पिंडदान करते हैं। इसके लिए गयाजी में गया तीर्थ पुरोहितों की एक परंपरागत व्यवस्था मौजूद है, जो पीढ़ियों से इस धार्मिक अनुष्ठान को विधि-विधान से कराते आ रहे हैं।
विशेष पर्वों पर बढ़ती है श्रद्धालुओं की संख्या
हालांकि पूरे वर्ष यहां पिंडदान का क्रम चलता रहता है, लेकिन पितृपक्ष, अमावस्या, महालय, सप्तमी-नवमी जैसे पर्वों पर यहां विशेष भीड़ देखी जाती है। इन दिनों में तो गयाजी पूरी तरह तीर्थनगरी के रूप में बदल जाता है।
प्रशासन की सुविधाएं
गयाजी आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा ठहरने, भोजन, पानी, स्वास्थ्य और सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की जाती है। रेलवे स्टेशन से लेकर विष्णुपद मंदिर तक की यात्रा में जगह-जगह स्वयंसेवी संस्थाएं और सरकारी सहायता केंद्र भी कार्यरत रहते हैं।
आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक विरासत का संगम
गयाजी न सिर्फ पिंडदान का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है, क्योंकि बोधगया यहीं स्थित है, जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह शहर हिंदू और बौद्ध संस्कृति का मिलाजुला प्रतीक बन चुका है।