Samachar Nama
×

Raipur से करोड़ों की जमीन गायब, रेकॉर्ड में खसरा नंबर भी नहीं: जमीन किसी की, कब्जा किसी और का
 

Raipur से करोड़ों की जमीन गायब, रेकॉर्ड में खसरा नंबर भी नहीं: जमीन किसी की, कब्जा किसी और का

छत्तीसगढ़ न्यूज़ डेस्क, राजधानी में अवैध कब्जे के खेल के बीच राज्य के लैंड रेकॉर्ड्स से हजारों एकड़ जमीन गायब हो गई है. दरअसल, राजधानी में जमीन का अवैध कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा है. कई एकड़ जमीन पंडरी, मोवा, गुढियारी और रायपुरा में सरकारी दस्तावेजों में गायब हैं. कुछ मामले आए हैं, जिसमें पीड़ितों की जमीन पर कब्जा भी कर लिया गया है. राजस्व अधिकारियों की मदद से दूसरी जमीन पर कब्जा कर खसरा नंबर भी दूसरा दर्ज करवा दिया गया है. राजस्व कार्यालयों के चक्कर काट-काट कर अब लोग न्यायालय की शरण में पहुंच गए हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि इस तरह की धोखाधड़ी अधिकतर बुजुर्ग भू-स्वामियों से ही की जा रही है. जमीन तलाशने कार्यालयों के चक्कर

गुढ़ियारी के नेताजी कन्हैया लाल वार्ड खसरा नं. 30/22, 38/113, 55/22, 87/30 का भाग रकबा 0.010 हे. यानी 1080 वर्गफीट पह.नं. 107/37 रानिमं रायपुर-1, जमीन का केस बुजुर्ग द्वारा बीते चार साल से ढुंढवाने के लिए चल रहा है. जिस जमीन की खरीदी पीड़ित ने की थी और प्रकरण राजस्व न्यायालयों में चल रहा था और दूसरी तरफ उनकी जमीन का खसरा क्रमांक बदलकर मकान बना दिया गया. अब वह खुद की जमीन तलाशने के लिए कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं. इसी तरह का मामला रायपुरा का है. यहां पर एक ट्रस्ट की जमीन भी गायब हो गई है.
महिला की जमीन रजिस्ट्री के 5 साल बाद दूसरे के नाम
67 वर्षीय अनित काबिराज की जमीन खसरा नं. 475/71, 1400 वर्ग फीट वार्ड क्रमांक- 27 डॉ. भीमराव आंबेडकर वार्ड मोवा से गायब हो गई है. उक्त भूमि की रजिस्ट्री 2008 में हुई थी. नामांतरण 28 नवंबर 2008 में हुआ था. पटवारी रेकॉर्ड और ऑनलाइन में महिला का नाम आज भी चढ़ा हुआ है. उन्होंने जमीन फूल चौक रायपुर निवासी कृष्ण कुमार विश्वकर्मा से खरीदी थी. पांच साल बाद 2013 में एक राजनीतिक रसूखदार ने उक्त भूमि को खुद खसरा नं. 476/30, 477/30 होना बताया. अब पीड़ित महिला खुद की जमीन तलाशने के लिए बार-बार आवेदन कर रही है.
सुनील सेन, एडवोकेट
2014 से पहले डायवर्टेड लैंड रेकॉर्ड तथा एग्रीकल्चर लैंड रेकार्ड अलग-अलग विभाग मेंटेन करते थे, जिसके कारण एक ही भूमि के दो-दो रेकॉर्ड डायवर्सन के बाद बन जाते थे. उसका फायदा उठाकर लोग डायवर्सन रेकॉर्ड से और एग्रीकल्चर रेकॉर्ड से अलग-अलग लोगों को एक ही जमीन बेच देते थे. यदि 10 हजार वर्ग फीट जमीन है, तो दो रेकॉर्ड का फायदा उठाकर 20 हजार वर्गफीट बेच देते थे. ऐसे लोगों के पास ही रजिस्ट्री और ऑनलाइन रेकॉर्ड होने के बाद भी जमीन नहीं है. इसके बाद जब भुईंया सॉफ्टवेयर आया तो कृषि रेकॉर्ड और डायवर्सन रेकॉर्ड को सम्मिलित कर दिया गया, जिसके कारण कई लोगों की भूमि ऑनलाइन दर्ज नहीं हो पाई. इसके अलावा अवैध प्लॉटिंग की जमीन का जो खाता बचता था उसकी भी रजिस्ट्री भी दूसरे खसरे में बैठाकर कर देते थे, जिसके कारण एक ही जमीन के कई मालिक सामने आ गए.
प्रकरण भेजा
पीड़ितों की शिकायत मिली है. सीमांकन के लिए एसडीएम को प्रकरण भेज दिया गया है. बुजुर्ग आवेदकों की हर संभव मदद की जाएगी.
सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे, कलेक्टर, रायपुर

रायपुर न्यूज़ डेस्क !!!
 

Share this story