
छत्तीसगढ़ न्यूज़ डेस्क, हनुमानजी न केवल ज्ञान के भंडार थे, बल्कि दक्षता की भी प्रतिमूर्ति रहे. किसी धर्माचार्य या कथाकार को शास्त्र का ज्ञान होना काफी नहीं है. दक्षता भी होनी बहुत जरूरी है. ये बातें समता कॉलोनी के खाटू श्याम मंदिर में कथा कर रहे संत चिन्मयदास ने कही.
उन्होंने कहा कि जब तक आप दक्ष नहीं होंगे तब तक ज्ञान कुछ नहीं कर सकता. शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि ज्ञान के साथ रक्षिता होने से ही मार्ग सुगम होता है. उन्होंने कहा कि भगवान हनुमान जब बाल्यावस्था में थे तो एक दिन उन्होंने सुबह भगवान भास्कर को देखा. उन्होंने सोचा कि यह कोई खाने की वस्तु है. वे उड़ान भरकर सूर्य के निकट गए और उन्हें अपने मुख में रख लिया. इससे समस्त सृष्टि में हाहाकार मच गया. इस घटना को देखकर इंद्र ने उन पर अपने अस्त्र से प्रहार कर दिया. तब जाकर उन्हें हनुमान नाम मिला.
विष्णु के राम अवतार का दर्शन करने शंकर ने धरा बंदर का रूप
संत चिन्मयदास ने बताया कि श्रीहरि यानी भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में मानव अवतार लिया. वहीं हनुमान भगवान शंकर का अवतार थे. भगवान के बाल्याकाल के दर्शन करने शंकर ने मदारी का रूप धरा और हनुमानजी बंदर बन गए. दोनों अयोध्या जाकर मदारी का नाम दिखाने लगे. तब श्रीराम अपने तीनों भाइयों के साथ उन्हें देखने आए. हनुमानजी बंदर के रूप में तब तक रहे, जब तक भगवान रामचंद्र गुरुकुल नहीं चले गए. वहीं हनुमानजी ने अपने बचनप में भगवान भास्कर यानी सूर्य नारायण से विद्या प्राप्त की.
रायपुर न्यूज़ डेस्क !!!