बिहार न्यूज़ डेस्क बिहार में जातीय गणना की खूब चर्चा है. राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे मुद्दा बनाया जा रहा है. बावजूद इसके सूबे की राजधानी पटना में रहने वाले दूसरे प्रदेश के लोग जात-पात पर वोट नहीं करते हैं. विकास, ईमानदार उम्मीदवार व बेहतर सरकार चयन को वे तवज्जो देते हैं. राष्ट्रीयता के लिए क्षेत्रीय मतदाता खुद को एक सूत्र में बांध लेते हैं.
पटना में लोकसभा की दो सीटे हैं. पटना सहिब और पाटलिपुत्र में क्षेत्रीय मतदाता है. पटना साहिब में सबसे अधिक क्षेत्रीय लोग रहते हैं. इसमें तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात समेत सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. क्षेत्रीय मतदाता मतदान का जो आधार बनाते हैं वो निसंदेह जाता-पात पर हावी रहता है.
दोनों लोकसभा क्षेत्र में 15000 क्षेत्रीय मतदाता हैं. इसमें 12 हजार सिख हैं. सबसे अधिक पटना सहिब लोकसभा क्षेत्र में है. श्री सनातनी सिख सभा के अध्यक्ष त्रिलोक सिंह निषाद ने कहा कि देश की तरक्की और ईमानदार उम्मीदवार को चुनने के लिए जात-पात को कभी आधार नहीं बनाते हैं. चाहे विधान सभा का चुनाव हो या लोक सभा का चुनाव जात को नहीं पटना और दिल्ली को देखते हैं.
पटना तमिल संगम के सदस्य का भी कहना है कि पटना में दक्षिण भारतीय लोगों में तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के लोग रहते हैं. इसमें सबसे अधिक 300 मलयाली परिवार हैं. वहीं, तमिलनाडु के करीब 150 परिवार रहते हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के करीब 100 परिवार रहते हैं. दक्षिण भारत से पटना में रहने वाले क्षेत्रीय मतदाताओं की संख्या 1600 से अधिक है. जाति को छोड़कर बाकी सभी चीजों को आधार बनाकर ही जनप्रतिनिधि का चयन करते हैं.
महाराष्ट्र के 1500 वोटर
महाराष्ट्र के संजय कुमार पटना को ही कर्म भूमि बना चुके हैं. उनका कहना है कि पटना में करीब 450 मराठी परिवार रहते हैं. महाराष्ट्र में जात-पात नहीं चलता. बिहार में हम मतदाता भी है. उम्मीदवार उम्मीदवार समाज और देश के विकास में क्या कुछ कर सकता है, उसपर सभी की नजर रहती है. संजय बताते हैं के गुजरात और मारवाड़ी समुदाय के लोग भी इन सब चीजों को अमूमन प्रमुखता नहीं देते हैं.
पटना न्यूज़ डेस्क