
बिहार न्यूज़ डेस्क विधान परिषद में शिक्षा विभाग के बजट पर सरकार के जवाब के दौरान शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर व सत्ता पक्ष के बीच धार्मिक ग्रंथों को लेकर नोकझोंक हुई.
भोजनावकश के बाद शिक्षा बजट पर मंत्री के जवाब के पहले से ही जदयू के नीरज कुमार गीता, कुरान व बाइबिल लेकर सदन में मौजूद थे और अपने संबोधन के दौरान उन्होंने धर्मग्रंथों में उल्लेखित तथ्यों की चर्चा कर सबके लिए शिक्षा की महत्ता व राज्य सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय प्रयासों पर जोर दिया. वहीं, शिक्षा मंत्री ने असर की रिपोर्ट व भ्रष्टाचार मुक्त नियोजन नियमावली लाने की बात की और फिर समाजवादी नेताओं के शिक्षा व समाज सुधार को लेकर किए गए प्रयासों की चर्चा करने लगे. कहा कि मुझे पता है कि शिक्षा को कहां ले जाना है. आप कहें तो नीति और हम कहें तो राजनीति. सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर ने विवाद बढ़ता देख शिक्षा मंत्री सहित सरकार के अन्य विभागों के जवाब को सदन पटल पर रखने का नियमन दिया और सदन की कार्यवाही को अगले कार्यदिवस तक के लिए स्थगित कर दी.
इस पर नीरज कुमार ने हस्तक्षेप किया और कहा कि ‘हम संविधान की चर्चा करें कि रामायण, महाभारत व कुरान में फंसे रहें. हम धार्मिक ग्रंथ की लड़ाई नहीं लड़ रहें, पढ़ाई व अवसर को लेकर लड़ रहे हैं. वहीं, राजद के सुनील कुमार सिंह ने कहा कि आपस में विवाद हो, ये ठीक नहीं, विषय पर ही मंत्री जी चर्चा करें. हमलोग शिक्षा मंत्री को सुनने के लिए बैठे हैं, उनका जो इतना ज्ञान है, वो बिहार को कैसे आगे ले जाना चाहते हैं, ठीक है, इनका प्रसंग भी आ जाए. सभापति देवेशचंद्र ठाकुर ने शिक्षा मंत्री को रोका और कहा कि आपकी भावनाओं का सम्मान है. आज जिस विषय पर सदन उपस्थित है, बात उसी पर रहनी चाहिए. लेकिन मंत्री ने बोलने देने का आग्रह करते हुए कहा कि भाजपा के राजेंद्र गुप्ता की बातें कार्यवाही का हिस्सा बनेगी. इस पर पुन सभापति ने कहा- विपक्ष के किसी भी सदस्य ने उन विषयों पर चर्चा नहीं की है, बिहार की शिक्षा पर चर्चा किया है. आप उस पर जवाब दीजिए. मंत्री ने कहा कि महोदय, यह शिक्षा से जुड़ी हुई बातें हैं, हम बच्चों को कैसे समझाएं.
इसके बाद निर्दलीय महेश्वर सिंह ने कहा कि 1810 ई का रामचरित मानस का मूल ग्रंथ है, उसे भी पढ़ना चाहिए. तभी, शिक्षा मंत्री ने गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित रामचरित मानस की पंक्तियों का उल्लेख किया और कहा कि इसमें ताड़ना का अर्थ दंड लिखा गया है, उस समय पुस्तक का मूल्य 8 रुपये था. फिर, उन्होंने 120 रुपये मूल्य वाले रामचरित मानस का उल्लेख किया और कहा कि इसमें ताड़ना का अर्थ बदल दिया गया है. इसके बाद सत्ता पक्ष की ओर से निर्दलीय महेश्वर सिंह ने पुन मंत्री को टोका और कहा कि हमलोगों के जमाने में ब्राह्मण व क्षत्रिय छात्र भी अनुसूचित जाति के शिक्षक के पैर छूते थे. ये कौन सी पुस्तक दिखा रहे हैं, 1810 वाली पुस्तक क्यों नहीं लेकर आए. मूल किताब लाते ही नहीं है.
एतना किताब लाते हैं, कहां-कहां से जुटा के लाते हैं और खोद-खोद के नुक्श निकालते हैं.
पटना न्यूज़ डेस्क