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Noida  हैसिंडा प्रोजेक्ट मामले में पुनर्विचार याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके खिलाफ दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में यस बैंक के सह-संस्थापक राणा कपूर को जमानत देने से इनकार कर दिया।  कोर्ट नेे कहा, “आम तौर पर, हम (जमानत देने के लिए) उस अवधि पर विचार करते हैं, जो पहले ही (हिरासत में) बीत चुकी है, लेकिन यहां उन्होंने (कपूर ने) पूरी वित्तीय प्रणाली को हिलाकर रख दिया। क्या यस बैंक मुश्किल में नहीं पड़ गया?  वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए शीर्ष अदालत से आग्रह करते हुए कहा, “वह 8 मार्च 2020 से सलाखों के पीछे हैं।”  जमानत याचिका पर विचार करने में पीठ की अनिच्छा को देखते हुए, सिंघवी ने विशेष अनुमति याचिका वापस लेने के लिए अदालत से अनुमति मांगी।  सुप्रीम कोर्ट ने कपूर को धारा 436-ए सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत उपचार का लाभ उठाने की स्वतंत्रता दी, जो एक विचाराधीन कैदी की रिहाई का प्रावधान करती है, जिसे अधिकतम कारावास की आधी अवधि तक हिरासत में रखा गया है।   बॉम्बे हाई कोर्ट ने जनवरी 2021 में कपूर द्वारा दायर पहली जमानत अर्जी खारिज कर दी थी और इस साल 4 मई को बाद की जमानत अर्जी भी खारिज कर दी थी।  एफआईआर में आरोप लगाया गया कि 2018-2019 के दौरान राणा कपूर ने डीएचएफएल को वित्तीय सहायता देने के लिए कपिल वाधवान और अन्य के साथ आपराधिक साजिश रची।  2018 में अप्रैल-जून के दौरान यस बैंक ने डीएचएफएल के शॉर्ट टर्म डिबेंचर में 3,700 करोड़ रुपये का निवेश किया था। लगभग उसी समय, कपिल वाधवान ने कपूर और उनके परिवार के सदस्यों को 600 करोड़ रुपये का भुगतान किया।  ईडी ने आरोप लगाया कि कपूर ने यस बैंक के माध्यम से भारी ऋण स्वीकृत करने के लिए कपिल वाधवान और अन्य द्वारा नियंत्रित कंपनियों के माध्यम से अपने और परिवार के सदस्यों के लिए वित्तीय लाभ हासिल करने के लिए यस बैंक के एमडी के रूप में अपने पद का दुरुपयोग किया।  उन्हें यस बैंक द्वारा डीएचएफएल कंपनी, जिसका स्वामित्व कपिल वाधवान और धीरज वाधवान के स्वामित्व में था और इसकी समूह कंपनियों को दिए गए फर्जी ऋणों पर रिश्वत मिली थी और उन रिश्वत राशि का कपूर द्वारा अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर संपत्ति खरीदने के लिए दुरुपयोग किया गया था।

उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क  सेक्टर-107 स्थित हैसिंडा परियोजना मामले में नोएडा प्राधिकरण ने उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की है. प्राधिकरण ने याचिका में अपना बकाया दिलवाने की गुजारिश की है. उसने कहा है कि फ्लैटों की रजिस्ट्री से उसका बकाया डूब जाएगा. याचिका पर 12 दिसंबर को सुनवाई होगी.

उच्चतम न्यायालय ने तीन महीने पहले इस मामले में नोएडा प्राधिकरण को आदेश दिया था कि बिना बकाया लिए फ्लैटों की रजिस्ट्री की प्रक्रिया शुरू की जाए. इसके अलावा जिन टावर को अधिभोग प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया है, उस प्रक्रिया को भी शुरू किया जाए. प्राधिकरण के बकाये को बाद में देखा जाएगा. न्यायालय के आदेश पर प्राधिकरण ने रजिस्ट्री की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अब तक करीब 40 फ्लैट की रजिस्ट्री हो गई है. बाकी बचे 60 फ्लैट की रजिस्ट्री की प्रक्रिया चल रही है.

प्राधिकरण के रिकॉर्ड के अनुसार हैसिंडा की सेक्टर-107 स्थित लोटस 300 परियोजना में 336 फ्लैट हैं. इनमें से टावर-1 और दो के 102 फ्लैट के लिए वर्ष 2019 में प्राधिकरण की तरफ से आंशिक अधिभोग प्रमाणपत्र जारी कर चुका है. यह परियोजना करीब 40 हजार वर्ग मीटर में है. इस परियोजना पर प्राधिकरण का करीब 191 करोड़ रुपये बकाया हैं. गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 29 फरवरी 2024 को प्राधिकरण को बिना बकाया लिए रजिस्ट्री कराने का आदेश दिया था. नोएडा प्राधिकरण ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी. मामले में प्राधिकरण हार गया था.

अब उच्चतम न्यायालय में दायर की गई पुनर्विचार याचिका में प्राधिकरण ने कहा है कि उसके बकाये को प्राथमिकता दी जाए. इस तरह से बिल्डरों से बकाया नहीं मिलने से प्राधिकरण का आर्थिक मामला गड़बड़ा जाएगा. विकास कार्यों समेत कई काम के लिए प्राधिकरण को धन चाहिए होता है. सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है. ऐसे मं् नोएडा विकास प्राधिकरण को बकाया दिलवाया जाए. इसके लिए एस्क्रो एकाउंट खुलवाया जाए ताकि कुछ रुपये प्राधिकरण को भी मिलते रहें.

 

 

नोएडा न्यूज़ डेस्क

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